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टूटे रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही है मध्यस्थता, जानिए कानून की नजर में इसका महत्व

घर परिवार के कई मामले घर से निकल कोर्ट तक पहुंच जाते हैं. कुछ मामले कोर्ट में ही सुलझ पाते हैं लेकिन कुछ ऐसे मामले हैं जिन्हे कोर्ट के बाहर दोनों पक्षों द्वारा ही सुलझाने की कोशिश की जाती है. ऐसा कब होता है, कानूनी रूप से क्या ये सही है या गलत है.

टूटे रिश्तों को जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही है मध्यस्थता, जानिए कानून की नजर में इसका महत्व

Written by My Lord Team |Published : January 13, 2023 6:56 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश में प्राचीन काल से ही आपसी रिश्तों को मजबूत बनाए रखने पर जोर दिया गया है. परिवार और समाज में रहने के दौरान हुए विवादों को सुलझाने के लिए शुरू से ही परिवार में मुखिया से लेकर गांव, समू​ह में भी मध्यस्थता स्थापित रही है.

वर्तमान में हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या के साथ पारिवारिक विवाद और आपसी विवाद भी बढ रहें है.कई विवाद केवल लोगों के बीच आपसी संवाद की कमी और हठता के चलते भी सामने आते है. इस तरह के विवादों को अदालत में सुलझाने में एक लंबा समय लगता हैं, इसलिए मध्यस्थता की मांग होने लगी.

क्या है मध्यस्थता

मध्यस्थता एक ऐसी प्रक्रिया है जहां दो पक्षों के बीच हुए विवाद को तीसरा पक्ष न्यायालय के बाहर सुलझाता है या सुलझाने की कोशिश करता है. पारिवारिक ​मामले से लेकर अब कई व्यापारिक मामले भी मध्यस्थता के जरिए सुलझाए जाते है. मध्यस्थता अधिकतम 3 बार और 180 दिनों के भीतर पूरी किए जाने का प्रावधान है.

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किसी भी मामले में आपसी सहमति के आधार पर समझौता करने या मामले का निस्तारण करने के लिए कई बार अदालतें खुद भी मध्यस्था का आदेश देते है. तो कई बार पक्षकार भी इसके लिए अनुरोध कर सकते है.

स्वतंत्र है पक्षकार

मध्यस्थता में कोई भी पक्षकार अपना पक्ष रखने के लिए स्वतंत्र है. पक्षकार चाहे तो मध्यस्थता में शामिल होने से इंकार कर सकते है या दूसरी बार के बाद मीडीएशन प्रक्रिया से हट सकते हैं या इसे और 180 दिनों के लिए भी बढ़ा सकते हैं.

मध्यस्थता में दोनों तरफ के पक्षकारों के साथ एक मध्यस्थ होता है जो दोनों पक्षों के लोगों को समझा-बुझाकर विवाद का निस्तारण या समाप्त करने का प्रयास करते हैं.

मध्यस्थता के प्रकार

हमारे देश में मुख्य रूप से दो प्रकार की मध्यस्थता होती है. कोर्ट द्वारा समझाइश के लिए मध्यस्थ के पास भेजे गए मामले Court referred Mediation में शामिल होते है तो वही निजी तौर पर मध्यस्थता का आवेदन करने वाले मामले प्राइवेट मीडीएशन Private Mediation में शामिल होते है.

कोर्ट द्वारा भेजे गये मीडीएशन (Court referred Meditation) - कोर्ट किसी भी सिविल केस (Civil Case) को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (The Code of Civil Procedure, 1908) के धारा 89 के तहत मीडीएशन के लिए भेज सकते है.

कोर्ट द्वारा मीडीएशन में आम तौर पर परिवार से संबंधित मामलों और कंपनी से संबंधित मामलों को भेजा जाता है. मीडीएशन के लिए डिस्ट्रिक्ट कोर्ट केस को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Service Authority - DLSA) में, हाई कोर्ट राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Service Authority) में और सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Service Authority - NALSA) में भेज सकते है.

इस तरह के मामलों में मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ को DLSA, SLSA या NALSA द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण देने के बाद नियुक्त किया जाता है.

इस तरह की मध्यस्थता में किसी मामले को कोर्ट में ले जाने से पहले भी जाया जा सकता है. इसके लिए दोनों विवादित पक्षों में किसी एक को या दोनो को मिलकर विधिक सेवा प्राधिकरण (Legal Service Authority) में आवेदन देना होता है.

विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किये गए मीडीएशन अगर सफल होते है तो उसके बाद समझौता आदेश पारित किया जाता है वह दोनों पक्षों पर बाध्य होता है.

अपील नहीं कर सकते

मध्यस्थता में सभी पक्षकारों की आपसी समझाइश के आधार पर फैसला लिया जाता है या समझौता आदेश पारित किया जाता है. किसी एक पक्षकार के भी मध्यस्थता से अलग होने की स्थिति में मध्यस्थता को असफल माना जाता है. लेकिन अगर एक बार मध्यस्थता सफल होने के बाद समझौता आदेश या अवार्ड पारित कर दिया गया है तो सभी पक्षों के लिए इसे स्वीकार करना बाध्यता है.

मध्यस्थता के द्वारा किसी मामले का निस्तारण होने के बाद उस मामले में अपील नहीं हो सकती. किसी भी मामले की किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती.

अपील केवल तभी की जा सकती हैं जब मध्यस्थता में किसी प्रकार की खामी रही हो या फिर मध्यस्थता में कोई गलत तथ्य पेश किया गया हो.

क्या है Private Meditation

प्राइवेट मीडीएशन में कोई भी योग्य व्यक्ति मध्यस्थ हो सकता है. इस मध्यस्थता के लिए मध्यस्थ और मध्यस्थता सेंटर (Meditation Center) को शुल्क (fee) देना पड़ता है. इस तरह की मध्यस्थता के लिए कोई भी व्यक्ति मध्यस्थता सेंटर में आवेदन देकर मध्यस्थता के लिए जा सकता है. इस मध्यस्थता में मुख्य रूप से कंपनी (Company) के केस आते है. प्राइवेट मीडीएशन सेंटर में जो भी फैसला होता है वह बाध्य नहीं होता है और इसके खिलाफ कोर्ट में जाया जा सकता है.

मीडीएशन बिल, 2021

हाल ही में हमारे देश के कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू जी ने 20 दिसंबर 2021 को राज्यसभा में मीडीएशन बिल, 2021 (The Mediation Bill, 2021) पेश किया था. इस बिल का उद्देश्य सिवल और कमर्शियल विवादों (Commercial Disputes) को कोर्ट और ट्रिब्यूनल (Tribunal) में जाने से पहले ही ठीक करना था.

इस बिल को 20 दिसंबर 2021 को ही स्थायी समिति (Standing Committee) के पास भेज दिया गया था जिसके बाद स्थायी समिति (Standing Committee) ने 13 जुलाई 2022 को अपना रिपोर्ट पेश की. स्टैडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पुराने बिल में कई खामिया बताई थी, जिसके बाद उसमें सुधार किया गया.

पारिवारिक और कम्पनी मामलो की मध्यस्थता

पारिवारिक विवादों की मध्यस्थता आम तौर पर विधिक सेवा समिति द्वारा की जाती है. इस मध्यस्थता में मध्यस्थ के रूप में कोई अधिवक्ता, पूर्व जज, प्रोफ़ेसर, कोई समाज सेवक या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान परिवार मामलों में रहा हो और लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा 40 घंटो का प्रशिक्षण प्राप्त है वह मध्यस्थता बन सकते है.

कंपनी से संबंधित विवादों की मध्यस्थता आम तौर पर प्राइवेट मीडीएशन सेंटर में किया जाता है लेकिन अगर वे चाहे तो अपना मीडीएशन लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास करवा सकते है. इस मीडीएशन कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट (Chartered Accountant), कम्पनी सेक्रेटरी (Company Secretary), कॉर्पोरेट अधिवक्ता (Corporate Advocate), कंपनी से संबंधित प्रोफेसर या कोई और व्यक्ति जिनका रुचि एवं ज्ञान कंपनी मामलों में है वह मध्यस्थ बन सकते है.

मध्यस्थता हमेशा ही किसी भी क्षेत्र के विशेषज्ञ होते है. जिस तरह के मामले होते है, उसी क्षेत्र के विशेषज्ञ को उनसे जुड़े मामले मध्यस्थता के लिए दिए जाते है.

मध्यस्थता और आर्बिट्रेशन में अंतर

मध्यस्थता और आर्बिट्रेशन दोनों ही विवाद निपटाने के दो तरीक़े है जो वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) के तहत सामने आते है. मीडीएशन में दोनों विवादित पक्षों को मनाया जाता है और बीच का समाधान खोजा जाता है लेकिन आर्बिट्रेशन मुकदमा (Litigation) की तरह होती है और उसकी दिए गए फ़ैसला आदेश के तरह होता है.

आर्बिट्रेशन में फ़ैसला दोनों पक्षों की सहमति से नहीं होती है, जो सही लगता है वह मामले में नियुक्त किए गए आर्बिट्रेटर द्वारा दिया गया फैसला होता है. मध्यस्थता में जो भी होता है उसे गुप्त रखा जाता है, सिर्फ अंतिम निर्णय ही साझा किया जाता है लेकिन आर्बिट्रेशन में जो कुछ भी होता है उसे गुप्त नहीं रखा जाता है.

मध्यस्थता केन्द्र का नया विधेयक

कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने 5 अगस्त 2022 को लोकसभा में नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (संशोधन) विधेयक, 2022 पेश किया था. जिसके बाद 8 अगस्त 2022 को इसे लोकसभा में पारित किया गया. 14 दिसंबर 2022 को इस विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया.

इस बिल के पास होने के बाद The New Delhi International Arbitration Centre का नाम बदल कर India International Arbitration Centre कर दिया गया है.