मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में यौन उत्पीड़न का मामला ये कहते हुए रद्द कर दिया कि मामले के तीन साल गुजर जाने पर भी आरोपी की पहचान नहीं हुई है. ऐसे में इस कार्यवाही जारी रखना नारीत्व का मजाक बनाने जैसा होगा. केस की सुनवाई के दौरान महिला को और अधिक शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी. कोर्ट ने तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम (Tamil Nadu Prohibition of Harassment of Women Act) की धारा 4 के तहत दायर यौन उत्पीड़न के इस मामले को रद्द कर दिया.
जस्टिस आनंद वेंकटेश की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. इस मामले की स्थितियों पर गौर करते हुए न्यायधीश ने कहा कि कई यौन शोषण के मामले अदालत के सामने आते ही नहीं है. वहीं कुछ पीड़ित महिलाएं हिम्मत करके आगे आई तो ये व्यवस्था इतनी अनुकूल दिखाई नहीं पड़ती है. इस तरह के मामले इतने संवेदनशील होते कि पीड़िता को सुनवाई के दौरान दोहरी शर्मिदगी उठानी पड़ती है. अदालत ने कहा कि शिकायत देने के कारण पीड़िता को यौन शोषण और अदालती सुनवाई के दौरान शर्मिंदगी, की दोहरी मार से गुजरना होता है. इस मामले में जब आरोपी की पहचान नहीं हुई है, साफ है कि वह बच जाएगा. यह अदालत वर्तमान मामले में इस तरह के उपहास को जारी रखने की अनुमति देने के लिए इच्छुक नहीं है. अदालत महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट, एग्मोर द्वारा जारी गवाह समन को चुनौती दी गई.
घटना 20 नवंबर, 2020 के सुबह की है, जब महिला (पीड़िता) सुबह की सैर (Morning Walk) पर गई. इसी दौरान एक स्कूटी सवार व्यक्ति ने उसकी छाती को छुआ और वहां से भाग निकला. महिला ने घटनास्थल के नजदीक घर के सीसीटीवी से फुटेज निकाला. इस फुटेज के आधार उसने पुलिस के समक्ष महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2002 की धारा 4 के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज करवाई. वहीं, 11 अगस्त, 2023 को मामले में सुनवाई के लिए महिला को निचली अदालत में बुलाया गया. सुबह 10 बजे से लेकर 4:30 बजे तक इंतजार करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ और उसे अनावश्यक रूप से इस घटना को याद दिलाने के मजबूर किया गया. वहीं, मामले में अदालत ने रिकार्ड पर मौजूद सबूतों और गवाहों पर गौर करते हुए कहा कि ये सभी साक्ष्य केवल घटना घटित होने को सिद्ध करते हैं. आरोपी की स्पष्ट पहचान करने में ये असफल रहे. फुटेज से भी आरोपी की पहचान कर पाना मुश्किल है.
इन मौजूदा हालातों में अदालत की राय थी कि ऐसे में जब आरोपी की पहचान नहीं हुई है तो इस यौन शोषण से जुड़ी घटना को लेकर अपराधिक मुकदमा चलाने का कोई औचित्य नहीं है. अदालत के नजरिए से यह नारीत्व का उपहास होगा. ऐसा कहकर अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत ने इस मामले को रद्द करने को इच्छुक थी.