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निर्भया केस से कोई सबक नहीं! नाबालिग आरोपियों के साथ अत्यधिक नरमी से पेश आया जा रहा: हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (सौजन्य से : एमपी उच्च न्यायालय की ऑफिसियल वेबसाइट)

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि देश में किशोरों के साथ काफी नरमी से पेश आया जा रहा है और 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले से विधायिका ने कोई सबक नहीं सीखा है. अदालत ने ये बात आरोपी की अपील खारिज करते हुए कही, जो  2017 में 17 साल की उम्र में चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया गया था.

Written by My Lord Team |Updated : September 18, 2024 10:41 AM IST

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि देश में किशोरों के साथ काफी नरमी से पेश आया जा रहा है और 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले से विधायिका ने कोई सबक नहीं सीखा है. अदालत ने ये बात आरोपी की अपील खारिज करते हुए कही, जो  2017 में 17 साल की उम्र में चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया था और बाद में किशोर सुधार गृह से भाग गया था. अदालत ने उसकी बची हुई सजा काटने के लिए उसकी गिरफ्तारी का वारंट जारी करने का आदेश दिया है.

किशोर आरोपियों के साथ नरमी से पेश आना भयावह!

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने 2017 में चार वर्षीय लड़की के बलात्कार के मामले में निचली अदालत की सजा के खिलाफ एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए ये कड़े शब्दों में टिप्पणियां कीं. 2017 में बलात्कार की घटना के समय दोषी की उम्र 17 वर्ष थी. वह सजा सुनाए जाने के छह महीने बाद 2019 में सात अन्य लड़कों के साथ किशोर सुधार गृह से भाग गया था.

उच्च न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह न्यायालय एक बार फिर यह देखने के लिए कष्ट में है कि इस देश में किशोरों के साथ बहुत नरमी से व्यवहार किया जा रहा है, और यह कि विधानमंडल, ऐसे अपराधों के पीड़ितों के लिए दुर्भाग्य की बात है, निर्भया की भयावहता से अभी भी कोई सबक नहीं सीखा है, जिसकी रिपोर्ट (2017) 6 एससीसी 1 (मुकेश बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी) के रूप में की गई है. वर्तमान मामले में उपलब्ध चिकित्सा साक्ष्य को देखते हुए, यह देखने के लिए किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं है कि किशोर रहते हुए अपीलकर्ता का आचरण कितना राक्षसी था, और उसकी मानसिकता का अंदाजा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि वह अवलोकन गृह से भी फरार हो गया है. वह वर्तमान में स्वतंत्र है, शायद सड़क के किसी अंधेरे कोने में किसी और शिकार की तलाश में छिपा हुआ है, और उसे रोकने वाला कोई नहीं है.

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न्यायालय ने कहा कि देश के संवैधानिक न्यायालयों द्वारा बार-बार ऐसी आवाजें उठाई जा रही हैं, लेकिन पीड़ितों की निराशा के कारण, वे निर्भया कांड के एक दशक बाद भी विधायिका पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाए हैं, जो वर्ष 2012 में हुआ था.  न्यायालय ने कहा कि इस आदेश की एक प्रति विधि सचिव, विधि मामलों के विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली (भारत) को भेजी जाए.

पूरा मामला क्या है?

इंदौर के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने संबंधित व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत 8 मई, 2019 को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी और आदेश दिया था कि उसे 21 साल का होने पर जेल भेज दिया जाए. निचली अदालत की सजा को एक की ओर से अपील के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, जो 13 नवंबर, 2019 को सात अन्य लड़कों के साथ किशोर गृह से फरार हो गया था. उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और दोषी की अपील खारिज कर दी. उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि फरार अपीलकर्ता के खिलाफ वारंट जारी किया जाए और उसे गिरफ्तार किया जाए ताकि वह बलात्कार के मामले में कारावास की शेष सजा काट सके. निर्भया कांड 2012 में 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी की छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या से संबंधित है.