नई दिल्ली: लखनऊ स्थित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल के लावारिस वार्ड की दयनीय स्थिति पर इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने गंभीर चिंता व्यक्क्त की है. इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को अस्पताल में इलाज में आ रही परेशानियों सुविधाओं की जांच करने के लिए भी निर्देशित किया है.
ज्योति राजपूत द्वारा दायर एक याचिका में कहा गया था कि, उसने 29 मई को सूरज चंद्र भट्ट नाम के बुजुर्ग व्यक्ति को देखा, ये व्यक्ति लकवाग्रस्त था और उसने कमर से नीचे कुछ पहना भी नहीं था. ज्योति ने बुर्जुर्ग की स्थिति को देखते हुए 108 में कॉल किया और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया। लेकिन अगले दिन जब वो बुजुर्ग का हाल जानने अस्पताल पहुंची तो उसने पाया कि उसका कोई इलाज नहीं किया गया था और न ही किसी ने उसकी जांच की थी.
याचिकर्ता ने आगे बताया में मरीज को लावारिस वार्ड में ले जाया गया, लेकिन वहां की ‘‘स्थिति और भी बदतर’’ थी। ज्योति के अनुसार यहां छह मरीज थे जो लकवाग्रस्त थे। उसने आरोप लगाया कि उक्त वार्ड में दुर्गंध फैली हुई थी। इसपर जब उन्हौने सिविल अस्पताल के अधिकारीयों को सूचित किया, तब भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद महिला ने अदालत का रुख किया.
मामले की सुनवाई दौरान न्यायमूर्ति आलोक माथुर और न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने कहा, ‘‘यह हैरान करने वाली बात है कि प्रदेश की राजधानी के बीचों-बीच स्थित इस अस्पताल की इतनी दयनीय हालत है।’’
साथ ही पीठ ने लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और सिविल अस्पताल के अधीक्षक को याचिकाकर्ता के इस आरोप की जांच करने को कहा कि अस्पताल में भर्ती एक बेसहारा मरीज को उचित उपचार मुहैया नहीं कराया जा रहा।