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भूमि आवंटन प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन...सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को पारदर्शिता की याद दिलाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवंटन के लिए पात्रता मानदंड पूरा नहीं करने के बावजूद मेडिनोवा रीगल को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (MHRCHS) को जिस तरह भूखंड आवंटित किया गया वह भाई-भतीजावाद और पक्षपात को दर्शाता है.

महाराष्ट्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : December 13, 2024 11:24 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावित मेडिनोवा रीगल कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (MHRCHS) के लिए भूमि आवंटन में पारदर्शिता की कमी के लिए महाराष्ट्र सरकार की आलोचना की. अदालत ने आवंटन प्रक्रिया में पक्षपात को उजागर करते हुए कहा कि सोसाइटी का कोई भी सदस्य टाटा मेमोरियल अस्पताल में काम नहीं करता था, जैसा कि दावा किया गया था. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह बहुमूल्य संसाधन है, इसलिए सरकार से अपेक्षा रहती है कि इसके वितरण में पारदर्शिता बरती जाए. बता दें कि ये मामला महाराष्ट्र सरकार द्वारा एमआरसीएचएस (MHRCHS) को साल 2000 में बांद्रा में आवासीय भूखंड को आवंटित करने से जुड़ा है.

भूमि आवंटन में सरकार ने तय नियमों का पालन नहीं किया: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने बंबई हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें भूमि के आवंटन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि आवंटन के लिए पात्रता मानदंड पूरा नहीं करने के बावजूद मेडिनोवा रीगल को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (MHRCHS) को जिस तरह भूखंड आवंटित किया गया, वह ‘भाई-भतीजावाद और पक्षपात’ को दर्शाता है.

अदालत ने कहा,

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‘‘भूमि समुदाय का एक बहुमूल्य संसाधन है, इसलिए सरकार से अपेक्षा है कि कम से कम वह इसके वितरण में पारदर्शिता दिखाए. इसलिए, हमारी राय में एमआरसीएचएस (MHRCHS) के पक्ष में आवंटन में पूरी तरह से मनमानी हुई है,’’

शीर्ष अदालत ने कहा,

‘‘जहां तक ​​वर्तमान अपीलकर्ता का संबंध है, भूखंड आवंटन का उसका मामला ऐसा विषय है जिस पर प्राधिकारों द्वारा अभी निर्णय लिया जाना है, लेकिन एमआरसीएचएस के पक्ष में भूखंड का आवंटन उचित नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया के साथ-साथ पात्रता मानदंडों का भी उल्लंघन है.’’

पीठ ने कहा कि रिकार्ड के अवलोकन से पता चलता है कि सोसायटी का एक भी सदस्य टाटा मेमोरियल अस्पताल में डॉक्टर नहीं है.

अदालत ने कहा,

 ‘‘डॉक्टर को तो छोड़िए, एक भी सदस्य टाटा मेमोरियल अस्पताल का कर्मचारी नहीं है, जिसके बारे में पहले कहा गया था और जिसके लिए भूखंड आवंटित करने की मांग की गई थी.’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस सोसायटी की संरचना भी अब मूल संरचना से पूरी तरह बदल गई है. पीठ ने कहा कि यदि भूमि सरकार की विवेकाधीन शक्तियों के तहत आवंटित की गई थी, तो लिखित में कारण बताना आवश्यक है कि किसी विशेष सोसायटी के पक्ष में ऐसा आवंटन क्यों किया गया.

क्या है मामला?

प्रस्तावित आवासीय सोसायटी एमआरसीएचएस (MHRCHS) ने 2000 में बांद्रा में एक भूखंड के आवंटन के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को आवेदन दिया था. आवेदन में उल्लेख किया गया था कि आवेदक सोसायटी के सदस्य अग्रणी अस्पताल और कैंसर अनुसंधान संस्थान ‘टाटा मेमोरियल सेंटर’ में काम करते हैं तथा सदस्यों के पास अपना कोई मकान नहीं है, जबकि वे लगभग 20 वर्षों से महाराष्ट्र में रह रहे हैं. आवेदन में यह भी कहा गया कि वे ऐसे स्थानों पर रह रहे, जो उनके कार्यस्थल से बहुत दूर है, इसलिए यात्रा करना कठिन और समय लेने वाला है. आवंटन के लिए अनुरोध करते हुए तर्क दिया गया कि डॉक्टर होने के नाते उन्हें आपात स्थिति में अस्पताल पहुंचने में समय लगता है.