Fake Encounter Case: सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को अंतरिम राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अगले आदेश तक प्रदीप शर्मा को सरेंडर करने पर रोक लगाया है. साथ ही प्रदीप शर्मा की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को अपना जबाव देने को कहा है. बता दें कि प्रदीप शर्मा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2006 से जुड़े एक फेक एनकाउंटर केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाई हैं. एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के इसी फैसले को चुनौती दी हैं. [ये मामला प्रदीप रामेश्वरम शर्मा बनाम महाराष्ट्र राज्य है]
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हृषिकेश रॉय और प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच ने प्रदीप शर्मा की याचिका पर सुनवाई की. बेंच ने अपने अगले आदेश तक शर्मा को सरेंडर करने के फैसले पर रोक लगाई है.
19 मार्च, 2024 के दिन, बॉम्बे हाईकोर्ट ने तेरह लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई. अन्य छह लोगों को आरोपों से बड़ी किया है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और गौरी वी गोडसे ने प्रदीप शर्मा की रिहाई को गलत पाया. प्रदीप शर्मा की रिहाई के फैसले को रद्द करते हुए उन्हें तीन सप्ताह के अंदर सरेंडर करने के आदेश दिया है. 876 पन्नों के फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि प्रदीप शर्मा के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद है, जो उनकी संलिप्तता को सही सिद्ध करती है.
11 नवंबर, 2006 में रामनारायण मिश्रा उर्फ लखन भैया (33) की पुलिस एनकाउंटर में हत्या हुई थी. इस एनकाउंटर की सत्यता की जांच के लिए एक एसआईटी टीम गठित की गई. एसआईटी ने प्रदीप शर्मा को मुख्य आरोपी माना, एनकाउंटर को फर्जी बताया.
साल, 2013 में, ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपी प्रदीप शर्मा रिहा कर दिया था. मामले में कुल 21 आरोपी थे, जिनमें से दो की मृत्यु हो गई. अन्य 18 लोगों को एनकाउंटर में शामिल होने का दोषी पाया गया.
वहीं, हाईकोर्ट ने 12 पुलिसकर्मी सहित 13 लोगों को दोषी पाया ठहराया, 6 लोगों को रिहा कर दिया है.
लखन भैया के भाई रामप्रसाद गुप्ता ने इस मामले में बड़ी भूमिका निभाई है. उन्होंने ही अपने भाई के गुमशुदा होने की रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस अधिकारियों के दफ्तरों के खाक छाने, जिसके चलते साल 2009 में इस मामले की दोबारा से जांच हुई. 18 साल बाद इस मामले में फैसला आया है.