सुप्रीम कोर्ट सोमवार को तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें कांग्रेस सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हा रेड्डी आयोग की आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई है. न्यायमूर्ति एल. नरसिम्हा रेड्डी आयोग का गठन पिछली बीआरएस सरकार द्वारा किए गए बिजली खरीद समझौतों और दो थर्मल पावर प्लांट के निर्माण की जांच के लिए किया गया था.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ 15 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी. इससे पहले तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख की याचिका को सीमा रेखा पर ही खारिज कर दिया था, जिसमें टीएस डिस्कॉम द्वारा छत्तीसगढ़ से बिजली खरीदने तथा टीएस जेनको द्वारा मनुगुरु में भद्राद्री थर्मल पावर प्लांट और दामरचेरला में यदाद्री थर्मल प्लांट के निर्माण के संबंध में तत्कालीन तेलंगाना सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की सत्यता और औचित्य की न्यायिक जांच करने के लिए एक सदस्यीय आयोग की नियुक्ति को अवैध, अधिकार क्षेत्र से बाहर, जांच आयोग अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के विपरीत और विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के विपरीत घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.
आयोग निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर रहा था और इसका गठन राजनीतिक कारणों से किया गया था. तेलंगाना उच्च न्यायालय के समक्ष, केसीआर के वकील ने तर्क दिया कि आयोग कानून के विपरीत काम कर रहा है, उनका दावा है कि न्यायमूर्ति नरसिम्हा रेड्डी ने जांच का विवरण घोषित करने के लिए एकतरफा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ काम किया. आयोग ने केसीआर को नोटिस जारी कर बिजली खरीद समझौतों और बिजली संयंत्रों के निर्माण से संबंधित विवरण मांगे थे.
चूंकि वह लोकसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त थे, इसलिए उन्होंने जवाब देने के लिए और समय मांगा था. पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा अपना जवाब प्रस्तुत करने से पहले ही, न्यायमूर्ति नरसिम्हा रेड्डी ने 15 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और कहा कि बिजली खरीद समझौतों और बिजली संयंत्रों के निर्माण में अनियमितताएं थीं. अपनी याचिका में, केसीआर ने तर्क दिया कि जांच आयोग अवैध, मनमाना, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है.