क्या अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग अनुसूचित जाति के किसान की आर्थिक नुकसान होने पर मुआवजा देने का आदेश सुना सकती है? क्या आयोग अनुसूचित जातियों के मुआवजे की सुनवाई कर सकती है? इन्हीं सवालों से जुड़ा एक मामला कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने आया, जिसमें एससी/ एसटी आयोग ने अनुसूचित जाति के किसान को हुई आर्थिक हानि से मुआवजा देने के निर्देश दिए थे.
मामला शिवमोगा के किसान से जुड़ा है, जिसने अपने बैल की मौत के लिए मुआवजे की मांग एससी/एसटी आयोग से की. आयोग ने किसान को आर्थिक हानि के लिए 25000 रूपये का मुआवजा देने के निर्देश दिए. अधिकारियों ने आयोग के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. आइये जानते हैं मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया है...
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य आयोग अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति किसानों को मुआवजे की सिफारिश कर सकता है. अदालत ने कहा कि आयोग को सिफारिश करने की शक्ति दी है, लेकिन उसे मानने को लेकर अंतिम फैसला राज्य सरकार पर है.
अदालत ने कहा कि कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग अधिनियम, 2002 के अध्याय III के खंड 8 के अनुसार, एससी/ एसटी आयोग सिफारिशें कर सकता है. अदालत ने आगे कहा कि चूंकि प्रतिवादी एससी समुदाय से आता है ऐसे में यह कहना कि कार्यवाही करना आयोग के क्षेत्र से बाहर है, उचित नहीं होगा.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि मुआवजा देने को लेकर अंतिम फैसला करना राज्य का हक है, आयोग केवल सिफारिश कर सकता है.
शिवमोगा के किसान के. मारीयप्पा ने अपने बैल की मौत के लिए मुआवजे की मांग की थी. किसान के. मारीयप्पा ने अपने बैल की मृत्यु के लिए मुआवजे की मांग की थी. उसने दावा किया कि बैल की नसबंदी कराने के लिए वेटरनरी डिस्पेंसरी गया था. ईलाज कराने के दिन बैल ठीक था, लेकिन बैल की अगले दिन मौत हो गई. उसने वेटरनरी डॉ. ए. एम. लक्ष्मण और समूह डी कर्मचारी वी. एच. चंद्रप्पा के खिलाफ पशुपालन और पशु चिकित्सा विज्ञान विभाग में शिकायत दर्ज कराया और मुआवजे की मांग की. शिकायत पर जांच हुई तो पता चला कि बैल की मृत्यु का कारण तीव्र मल्टी-ऑर्गन फेल्योर और सदमा था, डॉक्टर दोषी नहीं थे. किसान के वित्तीय नुकसान को देखते हुए 25000 रूपये मुआवजा देने की सिफारिश की गई.
इसके बाद किसान ने मुआवजे और अधिकारियों को दंडित करने की मांग करते हुए एससी/एसटी आयोग का रुख किया. वहीं, अधिकारियों ने दावा किया कि एससी/एसटी आयोग के पास अधिकारियों के पास दंड लगाने या मुआवजा देने का अधिकार नहीं है. कर्नाटक हाईरकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने याचिका खारिज कर दी, वहीं खंडपीठ ने बताया कि आयोग के मुआवजा की सिफारिश करने की शक्ति है.