हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा कि न्यायाधीशों को केवल जांच अधिकारी द्वारा एकत्र साक्ष्यों का मूल्यांकन करना चाहिए. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की कार्यवाही के दौरान आरोपमुक्त करने के आवेदनों पर संशोधन करने की गुंजाइश बेहद सीमित होती है. अदालत ने कहा कि केवल बचाव पक्ष की दलीलों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में 'संक्षिप्त सुनवाई' करना स्वीकार्य नहीं है. अदालत का यह फैसला डॉ. मोहनकुमार एम. द्वारा दायर समीक्षा याचिका (Review Plea) को खारिज करते हुए आया, जिन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 109 के तहत अपराध को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप थे. मामले में डॉ. मोहनकुमार पर आरोप लगाया कि उन्होंने 25 लाख रुपये की राशि का भुगतान किया ताकि एक आरोपी की बेटी को मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाया जा सके.
कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस एच पी संदेश द्वारा दिए गए फैसले में न्यायालय ने आरोपमुक्त करने के आवेदनों को संशोधित करने की सीमित गुंजाइश पर देते हुए कहा कि ऐसी कार्यवाही के दौरान ‘संक्षिप्त सुनवाई’ करना स्वीकार्य नहीं है, और केवल बचाव पक्ष की दलीलों को ध्यान में नहीं रखा जा सकता.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा,
"अभियोजन पक्ष द्वारा जमा किए गए साक्ष्य याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही को जारी रखने के लिए पर्याप्त सबूत देते हैं. ऐसे में केवल बचाव पक्ष की दलीलों के आधार पर उन्हें राहत नहीं दी जा सकती है."
हाईकोर्ट ने आरोपमुक्त करने के आवेदन को निचली अदालत द्वारा खारिज करने के फैसले को उचित पाया. निचली अदालत ने इस बात पर जोर देते हुए आवेदन खारिज किया था कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्रियों को केवल बचाव पक्ष की दलीलों के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता.
डॉ. मोहनकुमार पर अन्य आरोपी डॉ. सी. अनीशा रॉय की बेटी को एम.एस. रमैया मेडिकल कॉलेज में एमडी (पीडियाट्रिक्स) में दाखिला दिलाने के लिए 25 लाख रुपये की राशि के भुगतान का आरोप लगाया गया था. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह भुगतान रॉय के लिए वित्तीय मदद थी, जिसने अपनी बेटी की शिक्षा के लिए सहायता मांगी थी. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह धनराशि उनकी खुद की कमाई थी, जैसा कि उनके बैंक खाते और आयकर रिटर्न से पता चलता है.
इस दावे पर अदालत को बताया गया कि भुगतान सीधे संस्थान के खाते में किया गया था और उन्होंने आरोपी रॉय से कोई भी पैसा वापस पाने से इनकार किया. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वित्तीय मदद प्रदान करने को उकसावे के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि निचली अदालतों ने अन्य आरोपियों को इसी आधार पर बरी कर दिया था और उन्होंने खुद को भी आरोपमुक्त करने का अनुरोध किया.
वहीं, अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध किया, जिसमें याचिकाकर्ता के बैंक स्टेटमेंट और आयकर दस्तावेजों सहित साक्ष्य में गड़बड़ियों को उजागर किया गया. अदालत को बताया गया कि 25 लाख रुपये के भुगतान से पहले डॉ. मोहनकुमार के खाते में 17.5 लाख रुपये नकद जमा किए गए थे, जो उनके आयकर रिटर्न में नहीं दर्शाया गया था.
हालांकि अदालत ने इन दलीलों को मानने से इंकार करते हुए आईओ द्वारा जांच सामग्री पर भरोसा जताने को कहा है.
(खबर PTI इनपुट से है)