अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कर्नाटक राज्य के माराकुंबी गांव के 101 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था. ट्रायल कोर्ट ने SC-ST Act, 1989 के तहत दोषी पाते हुए 98 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. आरोपियों ने अपनी सजा को चुनौती और जमानत की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में याचिका दायर की, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने 99 आरोपियों को जमानत दिया है.
कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस एस. हरीश कुमार और जस्टिस टीजी शिवशंकर गौड़ा की पीठ ने सजायाफ्ता लोगों के सजा निलंबन और जमानत की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. अदालत ने कहा कि ट्रायल के दौरान करीब दस सालों तक वे बाहर रहे, उन्होंने किसी प्रकार से गवाहों और पीड़ित परिवारों के लोगों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की, ना ही दोबारा से SC-ST Act की कोई घटना सुनने को मिली. अदालत ने आगे कि इनके बाहर रहने से किसी नुकसान की आशंका उत्पन्न नहीं होती है, ऐसे में इन्हें जमानत दी जा सकती है.
पीड़ित पक्ष के वकील ने हाईकोर्ट के सामने दावा किया कि घटना को बीते दस साल हो गए है, गांव के लोग एकसाथ हंसी-खुशी रह रहे हैं. वकील ने आगे कहा कि घटना के वक्त पीड़ितों को केवल मामूली चोटें आई थी. इस पर बेंच ने सजा निलंबित करते हुए याचिकाकर्ताओं को जमानत दे दी है. बेंच ने फैसले में कहा कि उनके घरों के जलने की असल तस्वीर भी मौजूद है, इसलिए ट्रायल कोर्ट के फैसले पर विचार करने की जरूरत है.
घटना 28 अगस्त, 2014 के दिन की है, जब माराकुंबी गांव के होटल और सैलून में 'दलितों' की एंट्री पर रोक लगा दी गई थी. इस बात के बढ़ते ही इलाके में हिंसा भड़क गई और दोनों पक्षों, तथाकथित पिछ़ड़ी और बड़े जातियों के बीच जमकर बवाल हुआ, विवाद शुरू हुआ तो दोनों पक्ष एक-दूसरे पर ईंट पत्थर और डंडो से बीस होने की कोशिश करने लगे. जांच में बात सामने आई कि दलितों को ना केवल मारा गया, उनके घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया था. मामले की कोप्पल जिला अदालत में सुनवाई हुई. अदालत ने रिकार्ड पर रखे सबूतों और गवाहों के आधार पर 101 लोगों को दोषी करार देते हुए 98 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.