सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि अगर कानून के शासन को लोकतंत्र का सार बनाए रखना है, तो अदालतों को इसे बिना किसी डर या पक्षपात के लागू करना चाहिए. राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में जस्टिस नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि कानून सिर्फ नियमों का समूह नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, लिंग या सामाजिक स्थिति का हो, उसके साथ कानून के सामने समान व्यवहार हो.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कानून का शासन सुशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, क्योंकि भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो अन्य बातों के अलावा, एक स्वतंत्र बार के समर्थन और सहायता के कारण कायम है. उन्होंने कहा कि संविधान को उसकी पूरी उदारता और अच्छे इरादों के साथ लागू करने की जिम्मेदारी केवल सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों की ही नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी प्रत्येक वकील की है, जिसे संविधान का समर्थक होना चाहिए.
जस्टिस ने कहा कि अक्सर, कानून को एक ऐसे किले के रूप में देखा जाता है जिस तक केवल ताकतवर लोग ही पहुंच सकते हैं। लेकिन आपके हाथों में, इसे एक सेतु बनना होगा - अधिकारों और उपायों के बीच, संविधान और नागरिकों के बीच, न्याय और जनता के बीच एक सेतु. जस्टिस नागरत्ना ने जोर देकर कहा कि कानूनी पेशा समाज में बदलाव लाने का एक जरिया है, खासकर भारत जैसे देश में जहां गहरी असमानताएं हैं. उन्होंने यह भी जोर दिया कि संविधान को पूरी तरह लागू करने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर उस वकील की है जिसे संविधान का समर्थक होना चाहिए. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जहां अक्सर कानून को केवल शक्तिशाली लोगों की पहुंच में समझा जाता है, वहीं वकीलों को इसे अधिकारों और उपायों के बीच एक सेतु बनाना होगा. उन्होंने युवा विधि छात्रों से कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि कानून सभी के लिए सुलभ हो, और संविधान के संरक्षक के रूप में देश की सही दिशा में प्रगति में अपनी भूमिका निभाएं.