नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी की राउज एवेन्यू कोर्ट ( Rouse Avenue Court) की विशेष न्यायाधीश अंजनी महाजन ने पत्रकारों द्वारा सूत्रों के हवाले से प्रकाशित की जाने वाली खबरों को लेकर महत्वपूर्ण आदेश दिया है.
अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार पत्रकारों को जांच अधिकारियों को अपने स्रोत का खुलासा करने से कोई वैधानिक छूट नहीं है, खासकर जहां एक आपराधिक मामले की जांच में सहायता के उद्देश्य से इस तरह का खुलासा आवश्यक है.
जज अंजनी महाजन ने कहा कि संबंधित पत्रकारों द्वारा अपने स्रोतों का खुलासा करने से मना करने के कारण सीबीआई को पूरी जांच पर रोक नहीं लगा देनी चाहिए, जैसा उन्होंने इस मामले में किया है. जांच अधिकारी हमेशा पत्रकारों के संज्ञान में ला सकते हैं कि स्रोत का खुलासा, जांच के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण है.
जांच अधिकारी भारतीय दंड संहिता (IPC) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से जांच में शामिल होने के लिए कह सकते हैं। इसी के साथ सार्वजनिक व्यक्तियों का कानूनी कर्तव्य है कि वह जांच में अनिवार्य रूप से शामिल हों और जांच अधिकारियों की हर संभव मदद करें.
सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी, 2007 को सीबीआई को दिवंगत सपा नेता मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा अर्जित संपत्ति की जांच करने का निर्देश दिया था. 6 अक्टूबर, 2007 को सीबीआई की जांच पूरी हुई . इसके बाद, उन्होंने एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर एक स्थिति रिपोर्ट तैयार की गई और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दो सीलबंद लिफाफों में प्रस्तुत की गई.
सुनवाई के दौरान ही टाइम्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली ने एक समाचार प्रकाशित किया कि डीआईजी के आंतरिक नोट के मुताबिक सीबीआई ने स्वीकार किया है कि मुलायम सिंह को फंसाया गया था. इसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, स्टार न्यूज़ और CNN-IBN द्वारा भी प्रसारित किया गया था.
इसके बाद, सीबीआई ने कुछ अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज़ की, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि सीबीआई की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए मीडिया द्वारा फर्जी और मनगढ़ंत रिपोर्ट बनाई गई थी.
हालांकि, सीबीआई ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट (Closure Report) दायर की और कहा कि यह स्थापित नहीं किया जा सकता है कि किसने दस्तावेजों की जालसाजी (Forgery) की है और पत्रकारों को झूठी सूचना दी है क्योंकि पत्रकारों ने अपनी स्रोतों का खुलासा नहीं किया है. इसलिए आपराधिक साजिश को साबित नहीं किया जा सकता है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि जांच अधिकारीयों ने किसी भी मुख्य गवाह का बयान दर्ज़ नहीं किया है और जिन पत्रकारों का नाम गवाह सूची में (Witness Statement) था, उसे भी हटा दिया गया. अदालत ने कहा कि मामले की फिर से जांच करने की जरूरत है और पत्रकारों को CrPC की धारा 91 के तहत नाम देने के लिए कहा जा सकता है.
जज अंजनी महाजन ने सीबीआई से इस बात की भी जांच करने को कहा कि कैसे एक आधिकारिक दस्तावेज़, यानी सीलबंद लिफाफे में रखी गई सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किए जाने से एक दिन पहले लीक सीबीआई के कार्यालय से हो गई.
अदालत ने सीबीआई द्वारा दाखिल की गई क्लोजर रिपोर्ट (Closure Report) को खारिज कर दिया और सीबीआई को दोबारा मामले की जांच करने का निर्देश दिया है.