नई दिल्ली: रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के मामले में पहली बार केंद्र सरकार ने अपना रुख स्पष्ट किया है. 2014 के बाद से ही केन्द्र सरकार इस मामले में ऊहापोह की स्थिति रही है.
भाजपा नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश करते हुए सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने पर विचार किया जा रहा है.
केन्द्र सरकार की ओर से पेश किए गए जवाब के बाद सीजेआई(CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी को केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) के सामने प्रतिवेदन (Representation) पेश करने की छूट दी है.
सरकार का यह जवाब काफी लंबे विलंब के बाद आया है क्योंकि मामले की पिछली कई सुनवाइयों में सरकार ने लगातार स्थगन (Adjournment) की मांग की थी.
राम सेतु, जिसे आदम ब्रिज (Adam's Bridge) भी कहा जाता है, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट से पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट से दूर मन्नार द्वीप के बीच आपस में जुड़ी चुना पत्थर की एक श्रृंखला को कहा जाता है.
हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया सेतु माना जाता है, जिसे भगवान राम पार करके श्रीलंका तक गएं थे और सीता माता को रावण से बचाकर लाए थे.
दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसके मानव निर्मित होने की मान्यता है.
यूपीए सरकार के समय में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना (Sethu Samudram Shipping Canal Project) के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था लेकिन, कोर्ट की दखल के बाद 2007 में इस परियोजना पर रोक लगा दी गई. तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित थी.
वर्ष 2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि राष्ट्रीय हित में यह तय किया गया है कि राम सेतु को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा और केंद्र सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक रास्ते की तलाश कर रही है.
लेकिन अपने जवाब में सरकार ने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्ज़ा देने पर कोई रुख स्पष्ट नहीं किया. जिसके बाद 2018 में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की याचिका को मेंशन किया.
केन्द्र सरकार लगातार इस मामले में अपना जवाब देने के लिए समय मांगती रही.केंद्र सरकार ने याचिका पर जवाब देने में विलंब किया और कभी भी अपना रुख स्पष्ट नहीं किया।