नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आरटीआई के तहत मिलने वाली जानकारी को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आतंकवादी गतिविधियों पर खुफिया जाँच एजेंसियों और अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट और डोजियर का सूचना के अधिकार अधिनियम RTI के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है कि जांच एजेंसियों और अधिकारियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट और डोजियर अगर देश की संप्रभुता और अखंडता से समझौता करती है तो ऐसी रिपोर्ट या डोजियर का RTI के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की एकलपीठ ने एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिए है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने के लिए इस तरह के बेहद संवेदनशील रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा सकती.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित खुफिया अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट और डोजियर जो जांच का विषय हैं और इस तरह के मामले में व्यापक जनहित की सुरक्षा और रक्षा को देखते हुए रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जा सकता.
पीठ ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित खुफिया अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट और डोजियर, जांच का विषय हैं.
याचिकाकर्ता एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी को 11 जुलाई 2006 को मुंबई में हुए सीरियल ट्रेन बम ब्लास्ट मामले में दोषी घोषित किया गया था. 30 सितंबर 2015 को मकोका और एनआईए एक्ट के तहत स्थापित मुंबई की स्पेशल जिला अदालत संख्या 1 ने मौत की सजा सुनाई थी.
जिला अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि के लिए अदालत ने मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट को रेफर किया. इसी दौरान याचिकाकर्ता ने 21 मई 2017 को आरटीआई दाखिल करते हुए गृह मंत्रालय से बम ब्लास्ट मामले में महाराष्ट्र सरकार द्वारा केंद्र को सौपे गए डोजियर और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा जमा की गई इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़ी जांच रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने का अनुरोध किया.
गृह मंत्रालय के केंद्रीय सूचना अधिकारी द्वारा आरटीआई आवेदन को खारिज करने पर याचिकाकर्ता ने सभी प्रक्रिया के बाद अंतिम रूप से केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष अपील दायर की.
केन्द्रीय सूचना आयोग ने आरटीआई के तहत उक्त जानकारी उपलब्ध कराने से इंकार करते हुए 31 जुलाई 2019 को याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया. आयोग ने कहा कि इस मामले में कई विदेशी नागरिक भी शामिल है जो अभी जांच के दायरे में है लेकिन भगौड़े है.
केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी.गौरतलब है कि केन्द्रीय सूचना आयेाग दिल्ली में स्थित है जिसके चलते दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई.
दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने पैरवी करते हुए कहा कि चूंकि इस मामले में सैकड़ों आम लोगो की जान गई है. ऐसे में इस जांच से जुड़े दस्तावेज और डोजियर आरटीआई के तहत उपलब्ध कराए जाने पर यह जनहित में होगा कि जानकारी सार्वजनिक की जाए.
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस मामले की जांच पूर्ण हो चुकी है और याचिकाकर्ता को दोषी घोषित किया जा चुका है. ऐसे में आयोग के आदेश को रद्द कर उसे आरटीआई के तहत दस्तावेज उपलब्ध कराए जाए.
अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता एक गरीब व्यक्ति है और आरटीआई के तहत दिया जाने वाला शुल्क नहीं दे सकता है, इसलिए उसे ये सभी जानकारी निशुल्क उपलब्ध कराई जाए.
गृह मंत्रालय की ओर से याचिका का विरोध करते हुए अदालत से कहा गया कि याचिकाकर्ता देश में अब तक हुए वीभत्स आतंकवादी हमले में से एक में शामिल है. मंत्रालय ने कहा कि आरटीआई का आवेदन पूर्णतया एक समाचार पत्र में प्रकाशित आर्टिकल के आधार पर है.
सरकार की ओर से कहा गया कि आरटीआई के तहत इस तरह की संवेदनशील दस्तावेज व जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है जिस तरह की जानकारी मांगी गई है.
अधिवक्ता ने कहा कि आरटीआई की धारा 8 एक एच के तहत देश की सुरक्षा और अखंडता से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. इस मामले में कई विदेशी नागरिक अब भी भगोड़े है जिसके चलते डोजियर या जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना देशहित में नही है.
दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा जिन दो डोजियर और रिपोर्ट के लिए आरटीआई के तहत आवेदन किया है, वो पूर्णतया एक समाचार पत्र के आर्टिकल पर आधारित है.
पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि आतंकवादी गतिविधियां देश के साथ साथ नागरिकों की सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करती हैं. इस तरह के मामलों में किसी एक व्यक्ति विशेष की जांच पूर्ण होने का तात्पर्य यह नहीं है कि पुरे मामले की जांच अंतिम रूप से समाप्त हो गई हैं.
पीठ ने कहा कि मुंबई बम ब्लास्ट देश में हुए आतंकवादी हमले में सबसे खराब हमलों में शामिल है. इस हमले में सैकड़ों लोग मारे गए है और सैकड़ों घायल हुए है. और इस मामले की जांच रिपोर्ट और डोजियर के सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता पर बड़ा असर हो सकता है.
पीठ ने कहा कि एक तरफ याचिकाकर्ता 7/11 बम ब्लास्ट मामले में दोषी होने के नाते सूचना के अधिकार के आधार पर इन रिपोर्टों तक पहुंचना चाहते है तो दूसरी तरफ गृह मंत्रालय और एजेंसियां इस तरह के मामलो में देश के नागरिकों और देश की सुरक्षा चाहते है.
पीठ ने कहा कि आतंकवादी घटना से संबंधित खुफिया अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट और डोजियर जो की जांच का विषय है, उनका इस प्रकार,
आरटीआई के तहत खुलासा नहीं किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि राज्य पुलिस का एटीएस आरटीआई अधिनियम की धारा 24 के तहत आने वाला एक संगठन होगा. लेकिन इस तरह के मामले अपवाद है जहां पर जानकारी सार्वजनिक होने पर निर्दोष नागरिकों के अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं.
इसलिए इस प्रकार की सूचनाओं को मानव अधिकारों के आधार पर जारी नहीं किया सकता.