दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के चिकित्सा अधीक्षक से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों की पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जाए और पीड़िता की पहचान छिपाने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं. वहीं, हाईकोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए कहा कि मामले में अपराध का केवल प्रयास किया गया था और जांच अधिकारी (IO) पीड़ित की पहचान की छिपाने में विफल रहा है. अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि भविष्य में कानून का उल्लंघन न हो और पीड़ित की पहचान की रक्षा के लिए उचित दिशानिर्देश जारी किए जाएं. बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट, पॉक्सो मामले में एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसे साल 2021 में नाबालिग बच्ची के यौन उत्पीड़न का दोषी पाते हुए निचली अदालत ने 20 साल जेल की सजा सुनाई थी.
जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने पॉक्सो मामले की सुनवाई करते हुए एक बच्चे के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की जेल की सजा को भी कम कर दिया और कहा कि अपराध का केवल प्रयास किया गया था. जस्टिस ने कहा कि जांच अधिकारी (IO) पीड़ित बच्चे की पहचान की रक्षा करने में विफल रहा. न्यायाधीश ने 23 दिसंबर 2024 को अपने आदेश में कहा कि जांच अधिकारी चिकित्सीय जांच सहित किसी भी तरीके से पीड़ित की पहचान की रक्षा करने में विफल रहे. अधिकारी की विफलता पर कड़ा रुख अपनाते हुए अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि भविष्य में कानून का ऐसा कोई उल्लंघन न हो.
यह मामला पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के एक मामले में व्यक्ति की सजा के खिलाफ अपील से संबंधित था. दोषी को 2021 में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी. हाईकोर्ट ने उसे पॉक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत दोषी ठहराते हुए 5,000 रुपये जुर्माने के साथ जेल की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया. इसमें डॉक्टर को दिए गए बच्चे के बयान और उसकी मां द्वारा पुलिस को दिए गए बयान पर विचार किया गया जिससे यह निष्कर्ष निकला कि यौन उत्पीड़न का केवल प्रयास किया गया था. अदालत ने कहा कि अगर थोड़ा सा भी संदेह है तो इसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए. इस तथ्य को आधार बनाकर दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी की सजा कम कर दी है.
(खबर एजेंसी इनपुट से है)