नई दिल्ली: CBI औऱ ED जैसी जांच एजेसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करने और उन्हें परेशान करने में करने का आरोप लगाते हुए देश के 14 विपक्षी दलों की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम ने विचार करने से इंकार कर दिया है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की पीठ ने याचिका पर कहा कि यह किसी मामले के तथ्यात्मक संदर्भ के बिना अमूर्त दिशा-निर्देशों को निर्धारित नहीं कर सकते.
पीठ ने कहा कि राजनीतिक नेताओं को आम नागरिकों की तुलना में कोई अलग से प्रतिरक्षा नहीं मिलती है.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता आंकड़ों को ठोस कानूनी दिशा-निर्देशों में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए अब ये आंकड़े केवल राजनेताओं से संबंधित हैं.
पीठ ने आगे कहा कि कोई भी व्यक्ति जो व्यक्तिगत रूप से पीड़ित है, वह कानून के तहत उपचार प्राप्त करके न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है, लेकिन व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों को ध्यान में रखे बिना कोई सामान्य दिशानिर्देश नहीं हो सकता है.
मामले में पीठ द्वारा विचार किए जाने से इंकार करने के बाद याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने याचिका को विड्रा करने का अनुरोध किया. वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी द्वारा याचिका को विड्रा करने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है.
शुरुआत में, सिंघवी ने कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि विपक्षी नेताओं को 2014 से 2022 तक संघीय जांच एजेंसियों द्वारा लक्षित किया गया है और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मामलों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने दावा किया, ‘‘2014 और 2022 के बीच, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 121 नेताओं के खिलाफ जांच की गई है, जिनमें से 95 प्रतिशत नेता विपक्षी दलों से हैं।’’
सिंघवी ने दावा किया कि सीबीआई ने 124 राजनीतिक नेताओं की जांच की है और इनमें से 108 विपक्षी राजनीतिक दलों के हैं। पीठ ने कहा कि यहां तक कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मीडिया के पास अधिक शक्तियां नहीं हैं और ‘‘राजनीतिक व्यक्ति भी नागरिक हैं और एक नागरिक के रूप में वे समान नियमों के अधीन हैं।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वह किसी विशेष मामले में कोई विशेष राहत का अनुरोध नहीं कर रहे हैं और देश में 42 प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तारी से पहले और बाद की प्रक्रियाओं के संभावित दिशानिर्देश का अनुपालन चाहती हैं। इससे पहले, सिंघवी द्वारा 24 मार्च को तत्काल सुनवाई के लिए संयुक्त याचिका उल्लेखित की गई थी।
सिंघवी ने कहा था, "मैं भविष्य के लिए दिशानिर्देश का अनुरोध कर रहा हूं। यह एजेंसियों, सीबीआई और ईडी दोनों के दुरुपयोग के खिलाफ 14 दलों का एक उल्लेखनीय अभिसरण है।’’ उन्होंने दावा किया कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 95 प्रतिशत मामले विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने 2014 में मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के सत्ता में आने के बाद सीबीआई और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख किया था। सिंघवी ने कहा था, ‘‘दूसरे आंकड़े, 2014 से पहले और 2014 के बाद: मामलों में भारी वृद्धि हुई है। दोषसिद्धि की दर चार से पांच प्रतिशत है। हम गिरफ्तारी से पहले के दिशानिर्देश और गिरफ्तारी के बाद जमानत के दिशानिर्देशों का अनुरोध कर रहे हैं।’’
गौरतलब है कि यह याचिका भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), भारत राष्ट्र समिति (BRS), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP), राष्ट्रवादी कांग्रेस द्वारा दायर की गई थी। पार्टी (NCP), शिवसेना (UBT), JMM, JD(U), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), CPI, समाजवादी पार्टी, J&K नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित कुल 14 राजनीतिक दलों की ओर से दायर की गई थी.
याचिका में विपक्षी राजनीतिक नेताओं और असहमति के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने वाले अन्य नागरिकों के खिलाफ दंडात्मक आपराधिक प्रक्रियाओं के उपयोग में खतरनाक वृद्धि का आरोप लगाया गया था।