नई दिल्ली: गुजरात के ऊना की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता काजल हिंदुस्तानी को हाल ही में रामनवमी के एक कार्यक्रम में उनके द्वारा दी गई 'नफरती भाषण' के लिए उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) में भेज दिया है. काजल हिंदुस्तानी पर आरोप है कि उनके भड़काऊ भाषण के कारण ऊना में रामनवमी पर दंगे भड़क गए थे.
काजल हिंदुस्तानी ने पुलिस के सामने रविवार को आत्मसमर्पण किया जिसके बाद उनको ऊना की अदालत के सामने पेश किया गया.
काजल हिंदुस्तानी के ट्विटर अकाउंट के बायो में दी गई जानकारी के अनुसार वह एक एंटरप्रेन्योर, रिसर्च एनालिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी हैं. साथ ही वह खुद को गर्व से भारतीय भी बताती हैं. ट्विटर पर काजल हिंदुस्तानी के 92 हजार फॉलोअर्स हैं. विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों में भी काजल शामिल होती रहती हैं और अपने बयानों के चलते अक्सर सुर्खियों में बनी रहती हैं.
ख़बरों के अनुसार, अदालत ने काजल हिंदुस्तानी की जमानत याचिका को खारिज कर उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया. पुलिस ने रिमांड की मांग नहीं की थी, जिसके बाद काजल हिंदुस्तानी को जूनागढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया.
जानकारी के अनुसार काजल हिंदुस्तानी पर आरोप हैं कि उन्होंने 30 मार्च को रामनवमी के अवसर पर भड़काऊ भाषण दिया था, जिसके चलते एक अप्रैल की रात ऊना में दंगे भड़क गए थे और शहर में पथराव का भी मामला सामने आया था.
पुलिस ने दो अप्रैल को इस मामले पर संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज किया था और काजल हिंदुस्तानी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा), धारा 153A (धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 505 (सार्वजनिक शरारत करने वाले बयान) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
IPC की धारा 295A के अनुसार जो भी व्यक्ति, भारत के नागरिकों के किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से, जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से या तो बोलकर या लिखकर शब्दों द्वारा, या संकेतों या दृश्य प्रस्तुतियों (Visible Representation) द्वारा या अन्य किसी माध्यम से, उस वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करता है या अपमान करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति को इस धारा के तहत अपराधी माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.
धारा 295A के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है. दोषी साबित होने पर आरोपित को 3 साल तक की जेल या जुर्माने या दोनों ही सज़ा हो सकती है.
IPC की धारा 153A ‘धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने’ के मामले में लगाई जाती है. इसमें 3 साल तक के कारावास, या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है.
अगर कोई व्यक्ति किसी भी पूजा स्थल में या धार्मिक समारोहों के प्रदर्शन में लगे किसी भी सभा में कोई ऐसा बयान देगा जिससे दो वर्गों के बीच दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा हो सकती है या ऐसे अपराध को बढ़ावा देता है तो उस पर IPC की धारा 505 लगाई जाएगी. इस अपराध में दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को 3 साल से लेकर 5 साल तक की सजा या जुर्माना या फिर दोनों ही सजा हो सकती है.