नई दिल्ली: Allahabad High Court ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग की उम्र का सुरक्षित वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के मामले में जवाब पेश नहीं करने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक को फटकार लगाई है.
जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा-I ने अदालत के आदेशों के बावजूद अपना जवाब दाखिल नहीं करने पर महानिदेशक के रवैये को "सुस्त रवैया बताया है.
पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इस रवैये की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह की प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा "20 मार्च को पारित आदेश के पालना में एएसआई महानिदेशक को वांछित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अंतिम अवसर दिया गया था, लेकिन अभी तक यह रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है, जिससे इस बिंदु पर इस अदालत की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न हुई है.
पीठ ने एएसआई महानिदेशक के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि प्राधिकरण को इस मुद्दे के महत्व को समझना चाहिए.
पीठ ने कहा " महानिदेशक, एएसआई का पद संभालने वाले एक उच्च अधिकारी, जो पूरे देश में विशेष प्रशासन को नियंत्रित करता है, उन्हे मामले की गंभीरता को जानना चाहिए और मुख्य रूप से हाईकोर्ट के अदालती आदेशों का सम्मान करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि जब इस तरह के मामले, जिस पर पुरे देश की निगाहे है, ऐसे मामले को अधिक समय तक लंबित नही रखा जा सकता है, खासकर जब यह मामला बेहद ज्यादा प्रचार में है.
पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत किसी भी प्राधिकरण को वांछित रिपोर्ट जमा करने के बहाने देरी करने की अनुमति नहीं देगी. मामले में अदालत ने अब ASI महानिदेशक को अंतिम मौका देते हुए 17 अप्रैल तक जवाब पेश करने का आदेश दिया है.
गौरतलब है कि पिछले साल मई माह में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाए गए कथित 'शिव लिंग' के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए दायर याचिका को अक्टूबर 2022 में सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
सिविल कोर्ट ने अपने आदेश में पिछले साल 17 मई को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया था, जिसमें उस स्थान की सुरक्षा की बात कही गई थी, जहां कथित शिव लिंग पाए जाने की बात कही गई थी।
सिविल कोर्ट द्वारा याचिका को खारिज करने के आदेश को हिंदू उपासको की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक नागरिक पुनरीक्षण आवेदन दायर की गई थी.
ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग को लेकर हिंदू और मुस्लिम आमने-सामने हैं। जबकि हिंदुओं का दावा है कि यह एक शिव लिंग है और परिसर में हनुमान, श्रृंगार गौरी और गणेश की मूर्तियाँ भी हैं, मुसलमानों का कहना है कि यह लगभग 600 वर्षों से एक मस्जिद है और विवादित स्थल पर वे नमाज़ पढ़ते रहे हैं.
कानूनी विवाद तब शुरू हुआ जब हिंदू भक्तों ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पूजा करने के अधिकार की मांग करते हुए सिविल कोर्ट में वाद दायर किया. वाद में यह दावा किया गया कि यह एक हिंदू मंदिर था और अभी भी हिंदू देवताओं का घर है.
मामले में अदालत ने एक अधिवक्ता को कमिश्नर नियुक्त किया. कमिश्नर द्वारा मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया, जिसने परिसर की वीडियो टेपिंग की और सिविल कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी.
कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा गया कि शिवलिंग के समान दिखने वाली एक वस्तु मिली है. मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से इस दावे का विरोध करते हुए कहा गया कि यह वस्तु शिवलिंग नही होकर बस एक फव्वारा हैं.
इस कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच की मांग को लेकर दायर किए आवेदन को सिविल कोर्ट ने 14 अक्टूबर 2022 के आदेश के जरिए खारिज कर दिया.
सिविल कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई.
याचिका पर सुनवाई करते हुए नवंबर 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ASI महानिदेशक को जवाब पेश करने का आदेश दिया था कि क्या कथित शिव लिंग की उम्र का वैज्ञानिक तरीके से सुरक्षित मूल्यांकन हो सकता है.
मामले में ASI अपना जवाब पेश करने के लिए लगातार समय मांग रहा है. जिसके चलते हाईकोर्ट ने ASI निदेशक को फटका लगाई है.
मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी जिस तारीख तक ASI महानिदेशक को अपना जवाब पेश करना होगा.