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फेक कास्ट सर्टिफिकेट से हासिल की MBBS की डिग्री, Bombay High Court ने डॉक्टर को क्यों दी राहत? जानिए

सांकेतिक चित्र

हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा फेक कास्ट सर्टिफिकेट के आधार पर पूरी की गई MBBS की डिग्री को रद्द करने से इंकार किया है. अदालत ने कहा कि डॉक्टरी की डिग्री रद्द करने से राष्ट्रीय हित की हानि होगी.

Written by Satyam Kumar |Published : May 12, 2024 5:57 PM IST

Fake Caste Certificate Case: हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक डॉक्टर द्वारा फेक कास्ट सर्टिफिकेट के आधार पर पूरी की गई MBBS की डिग्री को रद्द करने से इंकार किया है. अदालत ने कहा कि डॉक्टरी की डिग्री रद्द करने से राष्ट्रीय हित की हानि होगी, जहां देश में डॉक्टरों और मरीजों की संख्या का अनुपात (Ratio) पहले से ही बहुत कम है, ऐसे में डॉक्टर द्वारा पूरी की गई पढ़ाई को रद्द करने से राष्ट्रीय हित की हानि होगी. बता दें कि व्यक्ति ने झूठी जानकारी देकर ओबीसी-नॉन क्रीमी लेयर का सर्टिफिकेट बनवाया था. इस कास्ट सर्टिफिकेट के आधार पर उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया, डिग्री हासिल की. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने डॉक्टर को राहत देते हुए उसकी MBBS की डिग्री रद्द करने से इंकार किया है.

MBBS की डिग्री रहेगी बरकरार: HC

बॉम्बे हाईकोर्ट में, जस्टिस एएस चंदूरकर और जस्टिस जीतेन्द्र जैन ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने छात्र की MBBS की डिग्री रद्द करने से इंकार किया लेकिन उसके एडमिशन को दोबारा से ओपन कैटोगरी में वर्गीकृत करवाया. साथ ही सामान्य कैटोगरी के तौर पर एडमिशन फी भरने के निर्देश दिए हैं. साथ ही 50,000 रूपये का जुर्माना भी लगाया है.

बेंच ने कहा,

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"याचिकाकर्ता ने एमबीबीएस का कोर्स पूरा कर लिया है और इसलिए, इस स्तर पर याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त योग्यता को वापस लेना उचित नहीं होगा, जब याचिकाकर्ता ने डॉक्टर के रूप में अर्हता प्राप्त कर ली है."

बेंच ने ये भी कहा,

"हमारे देश में, जहां जनसंख्या के मुकाबले डॉक्टरों का अनुपात बहुत कम है, याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त योग्यता को वापस लेने की कोई भी कार्रवाई एक राष्ट्रीय क्षति होगी क्योंकि इस देश के नागरिक एक डॉक्टर से वंचित हो जाएंगे."

सच्चाई सामने आई कैसे?

छात्र ने झूठी जानकारी के आधार पर कास्ट सर्टिफिकेट बनवाया. साल 2012-13 में सर्टिफिकेट के आधार पर लोकमान्य तिलक म्यूनिसिपल मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया. वाक्या ये हुआ कि मेडिकल कॉलेज में ओबीसी कोटा से नामांकन लेने वाले छात्रों के खिलाफ इंक्वायरी बैठी. याचिकाकर्ता के पिता से इंक्वायरी कमिटी ने पूछताछ की. बयान में खामियां थी.

इंक्वायरी कमिटी के सामने पिता ने कहा, साल 2018 में उनका तलाक हो गया था. फिर वे बच्चे की देखभाल के लिए साथ में रह रहे हैं. छात्र के पिता ने बताया कि पत्नी भी नौकरी करती है. लेकिन उनकी कोई आय नहीं है. बयान में खामियां पाते हुए कमिटी ने अपनी रिपोर्ट कॉलेज को सौंप दी.

रिपोर्ट के आधार पर छात्र के नामांकन को रद्द कर दिया गया है. छात्र ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने संशोधन और जुर्माने के साथ छात्र की डिग्री को जारी रखा है.