Don't Make Mockery Of Justice: सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से एक मामले का ट्रायल चार साल तक में शुरू नहीं कराने को लेकर दिखी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हर आरोपी को स्पीडी ट्रायल का अधिकार है. आपने चार साल से आरोपी को जेल में बंद करके रखा है और आपकी ट्रायल शुरू नहीं हो पा रही है. आप NIA है, न्याय का मजाक मत बनाइए. अदालत ने UAPA के आरोपी को ट्रायल में देरी के आधार पर जमानत दे दी है. अपीलकर्ता (आरोपी) ने सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इंकार किया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयन की डिवीजन बेंच ने NIA को ट्रायल में देरी के लिए फटकार लगाई है.
अदालत ने कहा,
"आप एनआईए हैं. कृप्या न्याय का मज़ाक न उड़ाएं. 4 साल हो गए हैं और मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। ऐसा नहीं होना चाहिए. आरोपी ने जो भी अपराध किया है, उसे त्वरित सुनवाई का अधिकार है."
NIA के वकील ने पहले सुनवाई को स्थगित करने की मांग की जिसे मानने से कोर्ट ने इंकार कर दिया.
अदालत ने आगे कहा,
"आपको 80 गवाहों से पूछताछ करनी है. तो, हमें बताइए कि उसे (आरोपी) को कितने समय तक जेल में रहना चाहिए?"
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मामले में दो सह-आरोपी को जमानत मिल चुकी है. वहीं, अपीलकर्ता का मामला अभी लंबित है. अदालत ने उक्त टिप्पणी को जमानत दे दी.
आरोपों के अनुसार, 9 फरवरी 2020 को सुबह 9:30 बजे मुंबई पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर अपीलकर्ता को पकड़ा था. कार्रवाई के दौरान पुलिस ने आरोपी के पास से जाली नोट बरामद किए गए हैं. कथित तौर पर आरोप लगा कि ये नोट पाकिस्तान से आए थे.
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मामले में दो सह-आरोपी को जमानत मिल चुकी है. वहीं, अपीलकर्ता का मामला अभी लंबित है.