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क्या मानसिक रूप से बीमार महिला को मां बनने का अधिकार नहीं है? जानें गर्भावस्था समाप्त करने की याचिका पर Bombay HC ने क्या कहा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि गर्भावस्था के 20 हफ्तों के बाद गर्भपात की अनुमति केवल उन मामलों में है जहां महिला मानसिक रूप से बीमार है. अदालत ने कहा कि सीमांत मानसिक विकलांगता को मानसिक विकार नहीं माना जा सकता है.

बॉम्बे हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : January 8, 2025 4:06 PM IST

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम सवाल उठाया है कि क्या एक मानसिक रूप से विकलांग महिला को मां बनने का अधिकार नहीं है. अदालत ने आगे कहा कि यदि हम यह मानते हैं कि औसत से नीचे की बुद्धिमत्ता वाले व्यक्तियों को माता-पिता बनने का अधिकार नहीं है, तो यह कानून के खिलाफ होगा. हाई कोर्ट एक 27 वर्षीय महिला के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पिता ने अपनी बेटी के 21 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी. याचिकाकर्ता ने अदालत में दावा किया कि उनकी बेटी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और अविवाहित है. हालांकि, महिला ने गर्भावस्था जारी रखने की इच्छा व्यक्त की है.

सीमांत मानसिक विकलांगता से पीड़ित है महिला: मेडिकल रिपोर्ट

पिछली सुनवाई में हाई कोर्ट ने महिला को मुंबई के राज्य द्वारा संचालित जे.जे. अस्पताल में चिकित्सा बोर्ड द्वारा जांच कराने का आदेश दिया था. चिकित्सा बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं है, बल्कि उसे सीमांत मानसिक विकलांगता (Borderline Intellectual Disability) का निदान किया गया है. उसकी आईक्यू 75 प्रतिशत है. अदालत ने यह भी नोट किया कि महिला के माता-पिता ने उसे कोई मनोवैज्ञानिक परामर्श या उपचार नहीं दिया, बल्कि केवल 2011 से उसे दवा पर रखा था. चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं है और महिला गर्भावस्था जारी रखने के लिए चिकित्सकीय रूप से स्वस्थ है. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि गर्भावस्था समाप्त की जा सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में गर्भवती महिला की सहमति अत्यंत महत्वपूर्ण है.

महिला को मां बनने से रोकना उसके अधिकार का उल्लंघन: HC

रिपोर्ट की जांच के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि महिला मानसिक रूप से विकलांग नहीं है और केवल उसकी बुद्धिमत्ता औसत से नीचे है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या केवल इस कारण से महिला को मातृत्व का अधिकार नहीं है. यदि हम यह मानते हैं कि औसत से नीचे की बुद्धिमत्ता वाले व्यक्तियों को माता-पिता बनने का अधिकार नहीं है, तो यह कानून के खिलाफ होगा. इस दौरान अदालत ने यह भी साफ किया कि गर्भावस्था के 20 हफ्तों के बाद गर्भपात केवल उन मामलों में अनुमति है जहां महिला मानसिक रूप से बीमार है. अदालत ने कहा कि सीमांत मानसिक विकलांगता को मानसिक विकार नहीं माना जा सकता है.

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वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को बताया कि महिला ने अपने माता-पिता को उस व्यक्ति की पहचान बताई है, जिसके साथ वह रिश्ते में है और जो गर्भावस्था के लिए जिम्मेदार है. अदालत ने महिला के माता-पिता को उस व्यक्ति से मिलने और बातचीत करने के लिए कहा, ताकि यह देखा जा सके कि क्या वह उससे शादी करने के लिए तैयार है.