हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने तलाक मामले में अहम टिप्पणी की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि पति की इजाजत के बिना पत्नी के रिश्तेदारों का उसके सुसराल में ज्यादा दिन तक रहना क्रूरता है और यह स्थिति मे ज्यादती तब होती है जब पत्नी अपने पति के घर पर ना हो. कलकत्ता हाईकोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी मंजूर की है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए पति को तलाक को मंजूरी दी है.
अदालत ने कहा,
"पत्नी के रिश्तेदारों का लंबे समय तक पति की इच्छा के खिलाफ उसके घर पर रहना क्रूरता के रूप में माना जा सकता है. यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है जब पत्नी खुद ही पति के घर पर नहीं रह रही हो."
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पाया कि इस मामले में पति-पत्नी एक लंबे समय अंतराल से अलग रह रहे हैं, ऐसे में उनके वैवाहिक संबंधों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई पड़ती है. बहस के दौरान अदालत को बताया कि इस मामले में पत्नी ने पति से अलग रहने का फैसला स्वयं ही लिया है. पति ने दावा किया घर पर रहने के दौरान भी महिला अपना ज्यादा समय अपने महिला मित्र के साथ ही बिताती थी.
इस मामले में कपल की शादी साल 2005 में हुई. साल 2008 में 25 सितंबर के दिन पति ने तलाक की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में अर्जी दी. वहीं, अक्टूबर, 2008 में पत्नी ने पति के परिवारवालों के खिलाफ सेक्शन 498ए के तहत क्रूरता का मामला दर्ज कराया. हालांकि, इइस मामले में पति के परिवार को अदालत ने बरी कर दिया था. हालांकि, फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी भी कर दी थी, जिसके खिलाफ पति ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की थी. तलाक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पति के वकील ने पीठ के समक्ष के इस बात को रखा.रिकॉर्ड पर रखे सबूतों के मद्देनजर कलकत्ता हाईकोर्ट ने तलाक को स्वीकृति दे दी है.