नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने DHFL मामले में ED की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक आपराधिक मामले में डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए 60/90 दिन की अवधि में रिमांड अवधि भी शामिल होगी.
Justice KM Joseph, Justice Hrishikesh Roy और Justice BV Nagarathna की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली ED अपील को खारिज करने के आदेश दिए है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने Yes Bank money laundering case में आरोपी DHFL प्रमोटर्स कपिल वाधवान और धीरज वाधवान को जमानत दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि “रिमांड अवधि की गणना उस तारीख से की जाएगी, जिस तारीख से आरोपी को मजिस्ट्रेट रिमांड पर लेते हैं. यदि रिमांड अवधि के 61वें या 91वें दिन तक आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है तो एक आरोपी डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार हो जाता है.
गौरतलब है कि इस मामले में कानूनी बिंदू तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की 2 सदस्य पीठ ने बड़ी पीठ को रेफर किया था. पीठ को इस बिंदू पर निर्णय लेना था कि क्या जिस दिन किसी अभियुक्त को हिरासत में भेजा गया है, उसे डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए 60 दिनों की अवधि की गणना करते समय शामिल किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 में प्रमोटरों को जमानत देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा देते हुए मामले में आरोपी कपिल वाधवान और धीरज वाधवान को नोटिस जारी किया था.
मामले की शुरूआत बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने के साथ हुई थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 20 अगस्त, 2020 को वाधवान बंधुओं को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि अनिवार्य डिफ़ॉल्ट जमानत चार्जशीट दाखिल न करने की अगली कड़ी है. हाईकोर्ट ने माना था कि ईडी निर्धारित 60 दिनों की अवधि के भीतर मामले में चार्जशीट दाखिल करने में विफल रही थी.
ईडी ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा था कि उसने प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं किया था और 60 दिन की अवधि समाप्त होने से एक दिन पहले ई-मेल के माध्यम से आरोप पत्र का एक हिस्सा दायर किया था.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यदि जांच एजेंसियां समय सीमा के भीतर अपनी जांच पूरी नहीं करती हैं, तो गिरफ्तार व्यक्ति 'डिफ़ॉल्ट जमानत' का हकदार होता है. हालांकि, वधावन को जमानत पर रिहा नहीं किया गया क्योंकि वे वर्तमान में सीबीआई की हिरासत में हैं.