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Deoghar Airport Case: बीजेपी नेता मनोज तिवारी और निशिकांत दुबे को SC से बड़ी राहत, FIR रद्द करने के फैसले को रखा बरकरार

साल 2022 में बीजेपी नेता मनोज तिवारी और निशिकात दुबे के खिलाफ देवघर एयरपोर्ट के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) फिस मे जबरन घुसने और विमान उड़ान भरने के लिए दबाव बनाने के आरोप में दर्ज की गई थी. हाई कोर्ट ने इस FIR को रद्द करने का आदेश दिया था, जिसे झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा...

बीजेपी नेता मनोज तिवारी और निशिकांत दुबे

Written by Satyam Kumar |Published : January 21, 2025 12:17 PM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने देवघर एयरपोर्ट में जबरदस्ती घुसने के मामले में बीजेपी नेता निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी को बड़ी राहत मिली है.  सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. यह मामला साल  2022 में दोनों नेताओं पर देवघर एयरपोर्ट के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) फिस मे जबरन घुसने और विमान उड़ान भरने के लिए दबाव बनाने के आरोप में यह एफआईआर दर्ज की गई है. एफआईआर को दोनों नेताओं ने हाई कोर्ट में चुनौती दिया, जिस पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने का फैसला सुनाया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी FIR रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा है.

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने इस मामले की सुना है. शीर्ष अदालत ने झारखंड हाई सरकार की अपील को स्वीकार करने से मना कर दिया है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को छूट दी है कि वो जांच के दौरान जुटाए गए तथ्यों  या सबूतों को एयरक्राफ्ट एक्ट के तहत सक्षम अधिकारी के सामने रख सकते है. अधिकारी फैसला लेंगे कि क्या क़ानून के मुताबिक दोनों बीजेपी नेताओं के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है.

जस्टिस अभय एस ओक ने कहा कि एयरपोर्ट एक्ट के तहत दर्ज किए गए प्राथमिकी के फैसले में हाई कोर्ट रोक नहीं लगाएगा. अदालत ने नागरिक उड्डयन महानिदेशक (DGCA) को मिली सामग्री के आधार पर निर्णय लेना है कि क्या इसके आधार पर विमान अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है या नहीं.

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सुप्रीम कोर्ट से पहले, झारखंड हाईकोर्ट ने FIR रद्द करते हुए कहा था कि इस मामले में मुकदमा चलाने के लिए एयरपोर्ट एक्ट के तहत अनिवार्य शिकायत या अनुमति की कमी है. कोर्ट ने यह माना कि एयरपोर्ट एक्ट को प्राथमिकता दी गई, जिसके कारण आईपीसी के प्रावधानों को लागू करने में बाधा उत्पन्न हुई.

झारखंड सरकार ने दावा किया कि एयरपोर्ट एक्ट की धारा 10 और 11ए के तहत जांच के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है. न्यायालय ने स्पष्ट किया किएयरपोर्ट एक्ट के तहत अपराधों का संज्ञान केवल तब ही लिया जा सकता है जब एयरपोर्ट प्राधिकरण द्वारा शिकायत दर्ज की जाए.