दिल्ली हाई कोर्ट ने ओखला धोबी घाट क्षेत्र में झुग्गी बस्ती को ढहाने के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ताओं पर दस हजार रूपये का जुर्माना लगाते हुए जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता 'अनधिकृत अतिक्रमणकारी' हैं और मुआवजे के हकदार नहीं हैं. अदालत ने साफ कहा कि जिस जगह को लेकर याचिकाकर्ता मुआवजा का दावा कर रहे हैं, उस जगह को डीडीए ने पहले अधिग्रहित कर रखा है.
जस्टिस धर्मेश शर्मा ने ‘धोबी घाट झुग्गी अधिकार मंच’ की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता संगठन के तथाकथित सदस्य किसी भी मुआवजे या पुनर्वास के हकदार नहीं हैं, क्योंकि वे अनधिकृत अतिक्रमणकारी हैं, जो बार-बार उस स्थल पर लौट आते हैं, जबकि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने इस जगह को जैव विविधता पार्क बनाने के लिए अधिग्रहीत किया हुआ है. जस्टिस शर्मा ने कहा कि चूंकि, संबंधित स्थल को डीडीए ने यमुना नदी के तटीकरण और संरक्षण के लिए अधिग्रहीत किया था, इसलिए संबंधित स्थल से याचिकाकर्ता यूनियन को हटाना व्यापक जनहित में है.
हाई कोर्ट ने तीन मार्च के अपने आदेश में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) अधिनियम 2010 और 2015 की नीति का हवाला देते हुए कहा कि हर झुग्गीवासी या जेजे बस्ती निवासी स्वत: रूप से वैकल्पिक आवास का हकदार नहीं है. अदालत ने कहा कि विचाराधीन जेजे बस्ती डीयूएसआईबी की सूची में शामिल 675 अधिसूचित जेजे बस्तियों में शामिल नहीं है, जिससे यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता यूनियन के सदस्य इस क्षेत्र पर अवैध रूप से कब्जा कर रहे हैं.
हाई कोर्ट ने कहा कि क्षेत्र में अतिक्रमण के कारण पानी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है और विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली में बार-बार आने वाली बाढ़ का मुख्य कारण नालों और नदी तल पर बसाई गई ऐसी अवैध बस्तियां हैं. अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया.
याचिका में दावा किया गया था कि धोबी घाट झुग्गी बस्ती 1990 के दशक से अस्तित्व में है, लेकिन 23 सितंबर 2020 को पुलिस ने इसके निवासियों को अगले दिन प्रस्तावित ध्वस्तीकरण के कारण अपने आश्रय खाली करने का निर्देश दिया था. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि निवासियों को बेदखली का पूर्व नोटिस नहीं दिया गया. उसने कहा था कि पर्यावरण संबंधी चिंताओं के नाम पर झुग्गी बस्ती ढहाई गई और डीडीए निवासियों को कोई अस्थायी आश्रय या उचित आवास उपलब्ध कराने में विफल रहा. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता यूनियन के याचिका दायर करने के अधिकार पर सवाल उठाया और कहा कि कई मौकों पर कुछ सदस्य वापस लौट आए, फिर से कब्जा कर लिया और बेदखल किए जाने के बाद भी विवादित क्षेत्र में रहना जारी रखा.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)