नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिआ संस्थान में शिक्षण और गैर शिक्षण पदों पर धर्म आधारित आरक्षण को मंजूरी देने के फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई. इस सुनवाई में कोर्ट ने संस्थान से उसके फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए उसका रुख जानना चाहा.
जामिया की कार्र्यकारी परिषद् के द्वारा 23, जून 2014 को एक आदेश पारित करते हुए, अनुसुचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण को ख़त्म करते हुए शिक्षण और गैर शिक्षण पदों पर धर्म आधारित आरक्षण देने का फैसला लिया गया था. इसके खिलाफ राम निवास सिंह और संजय कुमार मीणा द्वारा दायर एक याचिका में 23 जून, 2014 को पारित एक प्रस्ताव को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया कि इस कानून को उचित प्रक्रिया के बिना पारित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं की तरफ वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज पेश हुए. उन्हौने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए बिना किसी आरक्षण के 241 गैर-शिक्षण पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले एक अप्रैल के विज्ञापन पर तत्काल सुनवाई के साथ-साथ रोक लगाने की मांग की।
वहीं जामिया की ओर से पेश वकील प्रतिश सभरवाल ने मौजूदा ढांचे का बचाव करते हुए संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान बताया और कहा की विश्वविद्यालय एससी/एसटी के लिए आरक्षण नीति से बाध्य नहीं है।