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200 रुपये का हिसाब नहीं मिलने पर 93 करोड़ रुपये का बैंक अकाउंट फ्रीज, Delhi HC ने जांच एजेंसियों की कार्रवाई से जताई हैरानी

दिल्ली हाई कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि विवादित राशि, जो इस मामले में महज 200 रुपये है, के लेनदेन पर रोक लगाने का निर्देश देने के बजाय बैंक को पूरे खाते को फ्रीज करने का निर्देश दिया गया है.

दिल्ली हाईकोर्ट (चित्र पीटीआई)

Written by Satyam Kumar |Published : February 27, 2025 7:09 PM IST

दिल्ली हाई कोर्ट ने जांच एजेंसियों को बैंक खातों को फ्रीज करने में सावधानी बरतने और सहानुभूति के साथ कार्य करने का निर्देश दिया है. अदालत ने बैंक को विवादित राशि पर रोक लगाने की संभावना तलाशने के लिए कहा, बजाय इसके कि पूरे खाते को फ्रीज किया जाए. इस दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने गृह मंत्रालय को इस मुद्दे को हल करने और एक समान नीति बनाने के लिए संबंधित राज्यों और हितधारकों के साथ परामर्श करने का निर्देश दिया है.

200 रूपये की विवादित राशि 93 करोड़ अकाउंट फ्रीज

इस मामले में, याचिकाकर्ता के खाते में 93 करोड़ रुपये से अधिक की राशि शेष थी, लेकिन केवल 200 रुपये की त्रुटिपूर्ण प्रविष्टि थी. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस मनोज जैन ने उस आदेश से हैरानी जताते हुए कहा कि इस छोटी सी राशि के लेनदेन पर रोक लगाने के बजाय पूरे खाते को फ्रीज करने का निर्देश दिया गया है.  अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि विवादित राशि पर रोक लगाने के उपायों पर विचार किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता प्रीतम सिंह ने कहा कि अगर बिना कोई कारण बताए इस तरह के कठोर उपाय किए जाते हैं, तो निश्चित रूप से ऐसे खाताधारकों की वित्तीय चिंताओं के साथ खिलवाड़ हो सकता है.

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अदालत के 20 फरवरी के आदेश में कहा,

‘‘इसलिए अब समय आ गया है कि जांच/कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​बैंक खातों को ‘फ्रीज’ करने के संदर्भ में अपेक्षित सावधानी, सतर्कता बरतें और सहानुभूति के साथ कार्य करें.’’

दिल्ली हाई कोर्ट ने गृह मंत्रालय से इस मामले में कानून बनाने का निर्देश दिया है.

बैंक अकाउंट फ्रीज करने के बजाय विवादित राशि पर लगाए रोक

अदालत ने कहा कि बैंक खाते को ‘फ्रीज’ करने के बजाय प्राधिकारियों को विवादित राशि पर रोक लगाने की संभावना तलाशनी चाहिए ताकि खाताधारकों को होने वाली अनावश्यक कठिनाई को कम किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवादित राशि सुरक्षित है. ऐसे कई मामलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस मुद्दे को हल करने और एक समान नीति बनाने को कहा. गृह मंत्रालय को संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित हितधारकों के साथ परामर्श करने, एक समान नीति, मानक संचालन प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों को तैयार करने पर विचार करने का निर्देश दिया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे मामलों को उचित विचार और सहानुभूति के साथ संभाला जाए.

(खबर भाषा एजेंसी इनपुट के आधार पर है)