नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला और पुरूष के बीच सहमति के संबंधो को लेकर एक बार फिर से महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. कोर्ट ने 'आध्यात्मिक गुरु' संजय मलिक उर्फ संत सेवक दास की जमानत याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि एक महिला का किसी पुरुष के साथ रहने की सहमति देना कभी भी यह अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है कि उसने उसके साथ यौन संबंध बनाने की सहमति दी है.
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने यह महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि किसी महिला द्वारा स्थिती की सहमति और उसके द्वारा यौन संबंध बनाने की सहमति के बीच स्पष्ट अंतर करने की आवश्यक्ता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि एक अभियोजिका किसी पुरुष के साथ रहने के लिए सहमति देती है, भले ही कितने समय के लिए, यह अनुमान लगाने का आधार कभी नहीं हो सकता है कि उसने पुरुष के साथ यौन संबंध के लिए भी सहमति दी है.
आध्यात्मिक गुरु संजय मलिक की ओर से जमानत याचिका के पक्ष में तर्क दिया गया कि महिला ने चार माह का समय उसके साथ बिताया है. इस दौरान उसने दिल्ली, उत्तरप्रदेश और बिहार के कई स्थानों की यात्रा की है.
अधिवक्ता ने कहा कि पीड़िता ने अक्टूबर 2021 से लेकर 6 मार्च, 2022 तक साथ रहने के दौरान कोई शिकायत नहीं की और न ही अन्य जगहों पर प्राथमिकी दर्ज करने का कोई प्रयास किया, जहां उसके यौन उत्पीड़न का दावा किया गया था.
बचाव पक्ष की ओर से दी गई दलीलों को अस्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि पीड़िता ने अपने पति के अंतिम संस्कार और अनुष्ठान करने के लिए याचिकाकर्ता आरोपी के साथ प्रयागराज से बनारस और बनारस से गया तक की यात्रा की, जो सभी हिंदू पूजा और समागम के स्थान हैं.
अदालत ने कहा कि एक विदेशी नागरिक होने के नाते, हिंदू संस्कारों और समारोहों से अपरिचित होने के कारण उसने याचिकाकर्ता पर बंद आंखो से भरोसा किया.
अदालत ने कहा कि यह सच है कि उपरोक्त स्थानों की यात्रा लगभग 4 महीने की अवधि में हुई थी, और यह कहीं भी विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है कि याचिकाकर्ता ने अभियोजिका को 'बंधक' रखा था या उसे शारीरिक बल का उपयोग करके उसके साथ यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया था या संयम रखा गया.
सभी पक्षो की बहस के बाद अदालत ने कहा कि इस अदालत की राय में केवल अभियोजिका के मन की स्थिति का निर्धारक नहीं होगा, क्योंकि अदालत इस स्तर पर यह कहने में सक्षम हो सकती है कि कथित यौन संबंध सहमति से नही थे.
अदालत ने कहा कि इसके बावजूद की शारीरिक संबंधों की पहली घटना कथित तौर पर दिल्ली के एक छात्रावास में हुई है और उस घटना में कथित कृत्य की प्रकृति बलात्कार नहीं थी, लेकिन उस कृत्य के संबंध में पीड़िता की चुप्पी को अपराध का लाइसेंस नहीं माना जा सकता है.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी आध्यात्मिक गुरु' संजय मलिक उर्फ संत सेवक दास की जमानत याचिका के खारिज करने के आदेश दिए.
चेक गणराज्य मूल की पीड़िता महिला ने अपने पति की मृत्यु के बाद की रस्में निभाने के लिए भारत आई थी. हिंदू रीती रिवाजों के अनुसार इन रस्मों को निभाने के लिए वह आध्यात्मिक गुरु' संजय मलिक के संपर्क में आई. महिला के पति की मृत्यु 8 अगस्त, 2019 को हुई थी.
सितंबर 2019 में पीड़िता भारत आई थी और वह दिल्ली में एक हॉस्टल में रह रही थी. चार माह के दौरान महिला ने दिल्ली से लेकर उत्तरप्रदेश और बिहार के कई धार्मिक स्थलों की यात्रा की.
6 मार्च, 2022 को महिला ने दिल्ली में First Information Report (FIR) दर्ज कराते हुए संजय मलिक पर दुष्कर्म के आरोप लगाए. FIR के अनुसार आरोपी पर आध्यात्मिक गुरु' होने का नाटक करके उसका फायदा उठाने का आरोप लगाया गया.
आरोपी पर 12 अक्टूबर, 2019 को दिल्ली के एक हॉस्टल में महिला से छेड़छाड़ करने, उसके बाद 31 जनवरी, 2020 को प्रयागराज और 7 फरवरी, 2020 को बिहार के एक होटल में उसके साथ दुष्कर्म करने के आरोप लगाया.