दिल्ली उच्च न्यायालय ने बांग्लादेश के एक मरीज से जुड़े कथित अवैध किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट में फंसी महिला सर्जन को जमानत दे दी है. अदालत ने कहा कि इस स्तर पर, सर्जन पर रिकॉर्ड में हेराफेरी करने का आरोप लगाना, अंदाजा लगाने के जैसा है और यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर आगे की जांच में छानबीन की जा सकती है.
23 अगस्त, 2024 के एक आदेश में, जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने कहा कि आवेदक 1 जुलाई, 2024 से हिरासत में है. उसके संबंध में जांच पूरी हो गई है, और अभियोजन पक्ष द्वारा उठाई गई एकमात्र चिंता यह है कि एक डॉक्टर के रूप में, वे गवाहों को धमकी दे सकती है. अदालत ने सुझाव दिया कि इस चिंता को उचित शर्तों के माध्यम से इस शंका को दूर किया जा सकता है.
अधिनियम में स्वयं तीन स्तरीय सुरक्षा प्रणाली है: दस्तावेज़ प्रस्तुत करना, दूतावास द्वारा प्रमाणीकरण और वरिष्ठ डॉक्टरों और एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की समिति द्वारा सत्यापन. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह दावा नहीं करता है कि आवेदक उस समिति का हिस्सा था जिसने किडनी प्रत्यारोपण को मंजूरी दी थी. आरोपों से पता चलता है कि आरोपी ने अंग दान के लिए बांग्लादेश से गरीब मरीजों की व्यवस्था करने में सूत्रधार के रूप में काम किया. यह आरोप लगाया गया है कि सर्जरी को सक्षम करने के लिए गढ़े दस्तावेजों के आधार पर झूठी फाइलें बनाई गई. इस स्तर पर, आवेदक के खिलाफ आरोप मुख्य रूप से यह है कि उसने यह जानते हुए भी सर्जरी की कि मरीज अंग ट्रांसप्लांट के लिए योग्य नहीं था.
उन्होंने कहा कि पुलिस ने 1 जुलाई, 2024 को सुबह करीब 11 बजे आवेदक को अस्पताल से उठाया और उसी शाम उसे गिरफ्तार कर लिया, जिसके बारे में पाहवा का दावा है कि यह सीआरपीसी की धारा 46(4) का उल्लंघन है. एफआईआर में आवेदक को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है या उसके खिलाफ कोई विशेष अपराध नहीं बताया गया है. वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने यह भी तर्क दिया कि आवेदक ने केवल मरीजों का इलाज किया और टीओएचओ अधिनियम (TOHO Act) के तहत आवश्यक प्रासंगिक दस्तावेज तैयार करने में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उसने सर्जरी के लिए सभी मानक प्रक्रियाओं और अस्पताल के निर्देशों का पालन किया. संबंधित दूतावास द्वारा प्रमाणीकरण, जो टीओएचओ अधिनियम (TOHO Act) के तहत एक शर्त है, सर्जरी से पहले विधिवत रूप से अनुपालन किया गया था.
दिल्ली पुलिस की एफआईआर के अनुसार, यह मामला एक सुसंगठित अपराध गिरोह से जुड़ा है, जो कथित तौर पर अवैध किडनी प्रत्यारोपण में लिप्त है. कहा जाता है कि गिरोह बांग्लादेश और पूर्वोत्तर राज्यों के गरीब व्यक्तियों को निशाना बनाता था, और उन्हें किडनी के बदले पैसे देता था. मोहम्मद रसेल, जिसे गिरोह का सरगना बताया गया है, और उसके साथियों--मोहम्मद सुमन, रतीश पाल और इफ्ति--पर आरोप है कि उन्होंने इन अवैध गतिविधियों में अस्पताल के कर्मचारियों के साथ मिलकर काम किया है. अभियोजन पक्ष ने कहा कि रसेल ने किडनी दान करने वालों और मरीजों दोनों से संपर्क स्थापित किया है.