नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने पुलिसकर्मियों द्वारा व्हाट्सएप के माध्यम से गवाह को समन भेजने वाले मामलो को गंभीरता से लेते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि पुलिस के नजरों में वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों के प्रति कोई सम्मान नहीं है.
अदालत ने इस सूचना का भी संज्ञान लिया कि व्हाट्सएप पर गवाहों को समन भेजने के लिए दिल्ली पुलिस की ओर से कोई सर्कुलर नहीं जारी किया गया है. उसके बाद भी पुलिस यह प्रक्रिया अपना रही है.
तीस हजारी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) हेमराज ने कहा, कि "ऐसा लगता है कि डीसीपी के निर्देशों के बावजूद, थानों के प्रभारी और जांच निरीक्षक के साथ-साथ एसएचओ भी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं."
खबरों के अनुसार, दरअसल पंजाबी बाग थाने में दर्ज हत्या के एक मामले की सुनवाई हो रही थी. जिसमें अभियोजन पक्ष के एक गवाह के परिवार के सदस्य को पुलिस अधिकारी द्वारा टेलीफोन से संपर्क किया गया था. अधिकारी ने व्हाट्सएप के जरिए समन भेजा था. जिसका परिणाम ये हुआ कि तय समय पर अभियोजन पक्ष का गवाह अदालत में पेश नहीं हुआ और उसे बार-बार कॉल पर भी उसने कोई जवाब नहीं दिया.
अभियुक्त पक्ष के वकील, ऋषभ जैन ने अदालत का ध्यान उस आदेश की ओर खींचा, जो 11 फरवरी, 2019 को अदालत के द्वारा दिया गया था. जिसमें अदालत ने अभियुक्तों के अनुरोध पर, अभियोजन पक्ष के गवाह (पीडब्लू) अश्विन सिंह और पीडब्लू तजिंदर सिंह का एक ही दिन क्रॉस एग्जामिनेशन करने की इजाजत दी गई थी.
अदालत ने यह नोट किया कि पीडब्लू तजिंदर सिंह तय दिन पर क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए अदालत में पेश नहीं हुआ.
गवाह के बुलाने के लिए एक महिला (मीरा वंशल) को हेड कांस्टेबल प्रदीप ने टेलीफोन पर संपर्क किया था. थोड़ी बहुत पूछ- ताछ के बाद महिला ने बताया कि वह गवाह तेजिंदर सिंह की भाभी है और उसके इस निवेदन पर कि वह समन को उसके व्हाट्सएप पर सेंड कर दें, वो गवाह को सूचित कर देगी गवाही के लिए. जिसके बाद समन को महिला के वाट्सएप पर भेज दिया गया.
अदालत ने (दिल्ली) पुलिस आयुक्त द्वारा 18 फरवरी, 2022 को गवाहों को सम्मन तामील करने के संबंध में पारित एक स्थायी आदेश का हवाला दिया.
अदालत ने कहा कि इससे पहले भी ऐसे कई मामलों सामने आए हैं जिनमें गवाहों को समन पुलिस के द्वारा वाट्सएप पर ही भेजा गया है.
जिस पर संबंधित डीसीपी के द्वारा सभी एसएचओ को सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया गया था."लेकिन अभी भी पुलिस अधिकारी केवल व्हाट्सएप का ही इस्तेमाल कर रहे हैं."
न्यायाधीश ने अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा, " पुलिस अधिकारी गवाहों के घर जाने का जहमत नहीं उठा रहे हैं, गवाह के घर जाने का एक भी प्रयास नहीं कर सकते हैं, बल्कि उन्हें कम से कम तीन दौरा करना चाहिए."
वहीं अदालत ने कहा कि "इस मामले में भी, एचसी प्रदीप द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया था. रिपोर्ट को इंस्पेक्टर ऑफ इंवेस्टिगेशन, पीएस पंजाबी बाग द्वारा अग्रेषित की गई थी. जो एक तरह से उनके द्वारा की गई लापरवाही को दर्शाता है,"
अदालत ने यह भी कहा कि पीएस मुंडका के एक अन्य मामले में डीसीपी (पश्चिम) ने बताया कि व्हाट्सएप पर गवाहों को समन भेजा जाए ऐसा दिल्ली पुलिस के द्वारा कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया है. इसी तरह के सर्कुलर बाहरी जिले और उत्तरी जिले के डीसीपी को भी अलग-अलग मामलों में मिले हैं.
जिस पर न्यायाधीश ने कहा कि "ऐसा लगता है कि डीसीपी के सर्कुलर और स्थायी आदेश के रूप में निर्देश के बावजूद, थानों के प्रभारी और जांच अधिकारी के साथ-साथ एसएचओ भी इसके पालन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. "
कोर्ट ने मुंडका थाने में दर्ज प्राथमिकी और आदेश की प्रति, डीसीपी को उनके अवलोकन और उनके हाथों उचित कार्रवाई के लिए भेजने का निर्देश दिया.
अदालत ने जांच निरीक्षक और हेड कांस्टेबल प्रदीप को उनके स्पष्टीकरण के साथ व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए नोटिस भी जारी किया है. जिसके तहत यह पूछा गया है कि क्यों उन्होंने उनके खिलाफ दिल्ली पुलिस अधिनियम की धारा 66 और आईपीसी की धारा 187 के तहत उचित कार्रवाई नहीं की गई
इस बीच, अदालत ने संबंधित एसएचओ के माध्यम से पीडब्लू तजिंदर सिंह को समन भी जारी किया.