नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने देश में उपभोक्ता मंचो के कानूनी दायित्वों को लेकर दिए एक फैसले में महत्वपूर्ण व्यवस्था को स्पष्ट किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ता मंच/फोरम अत्यधिक विवादित प्रश्नों के तथ्या, बेहद अत्याचार के कृत्य या अपराधिक कृत्य जैसे फ्रॉड और धोखाधड़ी से संबंधित शिकायतों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं रखता है.
Justice Ajay Rastogi और Justice Bela M Trivedi की पीठ ने सिटी यूनियन बैंक लिमिटेड के सीएमडी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया है.
पीठ ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा की कमी को साबित करने का दायित्व शिकायतकर्ता पर है और सेवा में कमी के अस्तित्व के प्रति उपभोक्ता मंच द्वारा कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि उपभोक्ता मंचों के समक्ष पेश किए जाने वाले मामले और कार्यवाही सार रूप summary in nature में होती है और वे 'सेवा में कमी' पर निर्णय ले सकते हैं.
पीठ ने यह भी कहा कि "आयोग के समक्ष कार्यवाही प्रकृति में संक्षिप्त होने के कारण, तथ्यों के अत्यधिक विवादित प्रश्नों या कपटपूर्ण कृत्यों या धोखाधड़ी या धोखाधड़ी जैसे आपराधिक मामलों से संबंधित शिकायतों को उक्त अधिनियम के तहत फोरम/आयोग द्वारा तय नहीं किया जा सकता है.
तमिलनाडु राज्य उपभोक्ता आयोग ने R Chandramohan की शिकायत पर City Union Bank Ltd को दोषपूर्ण सेवा का दोषी मानते हुए मानसिक पीड़ा, हानि और कठिनाई के लिए ₹1 लाख के मुआवजे के साथ ₹8 लाख का भुगतान करने का आदेश दिया था.
R Chandramohan ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया गया था कि City Union Bank ने उसके ₹8 लाख के डिमांड ड्राफ्ट को एक गलत खाते में स्थानांतरित कर दिया था.
मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग City Union Bank Ltd पर 1 हजार रूपये की कोस्ट लगाने के साथ ही बैंक को आदेश दिया कि वह R Chandramohan को 1 लाख के मुआवजे के साथ 8 लाख का भुगतान करें.
City Union Bank Ltd ने राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपील दायर की. राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने भी राज्य आयेाग के आदेश की पुष्टि अपील को खारिज कर दिया.
राष्ट्रीय आयोग द्वारा अपील खारिज करने के आदेश को City Union Bank Ltd ने अपील दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी.
Justice Ajay Rastogi और Justice Bela M Trivedi की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में धोखाधड़ी के आरोप शामिल हैं, जो एक उपभोक्ता मंच के तहत शामिल नहीं किया जा सकता और इस मामले में बैंक अधिकारियों की ओर से कोई 'जानबूझकर चूक या अपूर्णता या कमी' नहीं थी.
पीठ ने कहा कि इसलिए उसकी शिकायत अधिनियम की धारा 2(1)(जी) के अर्थ में खारिज किए जाने योग्य है,इसलिए खारिज करने का आदेश दिया जाता है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने City Union Bank Ltd की अपील को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग और राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में प्रतिवादी-शिकायतकर्ता R Chandramohan सेवा में कमी को साबित करने में असफल रहा है.