नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India), न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने हाल ही में, अपने एक भाषण में संवैधानिक संस्थानों के महत्व को हाईलाइट करते हुए यह कहा है कि संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए इन संस्थानों का होना बहुत जरूरी है।
आपको बता दें कि हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने कैंब्रिज लॉ यूनिवर्सिटी (Cambridge Law University) में एक लेक्चर दिया है जिसमें उन्होंने संवैधानिक संस्थानों के महत्व पर बात की और उन चार पहलुओं को हाईलाइट किया है जिनसे एक देश और उसके नागरिकों के बीच का रिश्ता पक्का और गहरा बनता है।
अपने भाषण में जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह कहा है कि संविधान और उसमें शामिल अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि संविधान के तहत एक ऐसा संस्थान हो, जो देश में सत्ता के उपयोग-दुरुपयोग को नियंत्रित कर सके।
मुख्य न्यायाधीश का कहना है कि अगर संविधान को साल दर साल प्रासंगिक रहना है तो इसे सरकार को मौलक अधिकारों को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौंपने के साथ-साथ ऐसे संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए, जो एक शासन प्रणाली तैयार कर सकें और उसे चला सकें।
चार पहलुओं पर टिका है देश और उसके नागिरक का रिश्ता
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश और उसके नागरिकों के बीच का रिश्ता पक्का किस तरह होता है, वो कौन से पहलू हैं जो इस रिश्ते की नींव माने जा सकते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ बताते हैं कि वो चार पहलू जो इस रिश्ते का आधार हैं, वो हैं- संवैधानिक प्रक्रियाएं, शासन के लिए संस्थागत व्यवस्था, संविधान के तहत काम की जांच और लोकतंत्र में लोगों की भागेदारी।
संवैधानिक संस्थानों के महत्व के साथ-साथ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर भी जोर दिया है कि इन संस्थानों के बीच अधिकारों का विभाजन (Separation of Powers) की क्या अहमियत है। उनका ऐसा मानना है कि हर संवैधानिक संस्थान का यह भी एक काम है कि वो बाकी संस्थानों की शक्ति (power) पर एक चेक रख सके।
उन्होंने हाईलाइट किया कि हमारा संविधान शासन का एक विकेंद्रीकृत मॉडल (Decentralized Model of Governance) की कल्पना करता है जिसमें स्थानीय स्वशासन और पंचायती राज से लेकर राज्य और केंद्र सरकार तक, सब शामिल है।
इस तरह, संविधान सत्ता को इस तरह विभाजित करता है जिससे संस्थानों में जवाबदेही हो और अधिकारों और शक्ति का दुरुपयोग न हो।
यहां जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के महत्व के बारे में भी बात की है। उन ऐसा मानना है कि न्यायिक समीक्षा संविधान के तहत एक तरीके की स्क्रूटिनी है जिसे तब इस्तेमाल किया जा सकता है जब कोई संवैधानिक संस्थान अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करे।