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नाबालिग की सहमति कानून की नजर में सहमति नहीं — दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 वर्षिय युवक और 16 वर्षिय नाबालिग के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के मामले में नाबालिग को सहमति को सहमति मानने से इंकार करते हुए जमानत याचिका को खारिज कर दिया है.

Written by nizamuddin kantaliya |Published : December 6, 2022 9:15 AM IST

नई दिल्ली, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की को बहला फुसलाकर भगा ले जाने और फिर सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के मामले में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में नाबालिग की सहमति भी कानून की नजर में सहमति नहीं है.

16 वर्षीय नाबालिग

मामले के आरोपी युवक को एक 16 वर्षीय लड़की के पिता की ओर से दायर मुकदमे में गिरफतार किया गया था.पिता की ओर से आरोप था कि आरोपी युवक ने उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म किया है और बेटी की उम्र ज्यादा दिखाने के लिए आरोपी ने आधार कार्ड में भी हेराफेरी की गयी हैं.

आरोपी की ओर से जमानत याचिका के पक्ष में तर्क दिया गया कि मामले में प्रतिवादिया और आरोपी एक दूसरे से प्यार करते है और दोनो अपनी सहमति से ही घर से भागे थे और लड़की की सहमति से ही दोनो के बीच शारीरिक संबंध बने है.

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पिता की एफआईआर

जमानत याचिका के पक्ष आरोपी की ओर से अदालत को बताया गया कि वह इस मामले में 2019 से ही हिरासत में है और पुलिस इस मामले में चार्जशीट पेश कर चुकी हैं.चार्जशीट के अनुसार मजिस्ट्रेट के समक्ष लड़की द्वारा उसके पक्ष में बयान दिए गए है.

आरोपी की ओर से अदालत को बताया गया कि लड़की ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में कहा कि वह उसका बॉयफ्रेंड था और वह उसके साथ करीब डेढ़ महीने तक रही.

लड़की ने अपने बयान में ये भी कहा कि आरोपी ने उसके साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए और वह उसके साथ ही रहना चाहती है.

जन्मतिथि में बदलाव

वही इस मामले में लड़की के पिता की ओर से जमानत का विरोध करते हुए कहा गया कि उसकी बेटी नाबालिग है और उसकी सहमति का कानून की नजर में कोई अस्तित्व नहीं है. साथ ही आरोपी पर उसकी बेटी के आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि में बदलाव कर उसकी उम्र 18 से अधिक दर्शाने का भी आरोप लगाया गया.

पिता के अधिवक्ता की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि आरोपी ने उसकी बेटी को एसडीएम कार्यालय ले जाकर आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि में बदलाव करवाया है. उसकी बेटी की जन्म तिथि 5 मार्च 2002 थी जिसे 5 मार्च 2005 के रूप में बदल दिया गया, जिससे कि यह दिखाया जा सके कि जिस दिन उनके बीच शारीरिक संबंध बने वह बालिग थी.

नाबालिग की सहमति

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद जस्टिस जसवंत सिंह ने दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि नाबालिग की सहमति कानून की नजर में सहमति नहीं है और आरोपी नाबालिग के साथ दुष्कर्म का आरोप है जिसमें जमानत नहीं दी जा सकती.

अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि "16 साल की उम्र में नाबालिग की सहमति, विशेष रूप से, जब आवेदक 23 साल का था और पहले से ही शादीशुदा था, नाबालिग की सहमति कानून की नजर में कोई सहमति नहीं है. ऐसी स्थिति में आरोपी को जमानत दिए जाने की कोई स्थिति नही है.

हाईकोर्ट ने आधार कार्ड में नाबालिग लड़की की जन्म तिथि के साथ छेड़छाड़ करने को भी एक गंभीर अपराध माना है.हाईकोर्ट ने कहा कि "ऐसा लगता है कि आरोपी याचिकाकर्ता आधार कार्ड पर जन्मतिथि बदलवाकर लाभ उठाना चाहता था ताकि जब आवेदक ने शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया, तो वह नाबालिग न हो.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी युवक की जमानत याचिका को खारिज करने के आदेश दिए.