नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में बताया कि कैसे कोई भी तकनीक तटस्थ नहीं होती है और यह से वास्तविक दुनिया में तैनात होने पर किस तरह से मानवीय मूल्यों को प्रतिबिंबित कर सकती है। सीजेआई ने बताया कि कैसे किसी को उन मानवीय और सामाजिक मूल्यों पर विचार करना चाहिए जो प्रौद्योगिकी का प्रतिनिधित्व करते हैं, खासकर उस संदर्भ में जिसमें उन्हें उपयोग किया जाता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के 60वें दीक्षांत समारोह में बोलते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसमें अपार संभावनाएं हैं लेकिन इसका उपयोग भेदभाव और अनुचित व्यवहार को कायम रखने के लिए भी किया जा सकता ह।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, एआई का एक महत्वपूर्ण प्रभाव भेदभाव को बढ़ाने और निष्पक्ष उपचार के अधिकार को कमजोर करने की क्षमता है। कई एआई सिस्टम को डेटा इनपुट के आधार पर पक्षपातपूर्ण निर्णय लेने का प्रदर्शन करते दिखाया गया है जो सामाजिक पूर्वाग्रहों को दर्शाता है।
उदाहरण देते हुए सीजेआई ने बताया की कई कंपनियों "द्वारा तैनात किए गए एआई भर्ती उपकरण महिलाओं के बजाय पुरुषों को पसंद करते थे क्योंकि उपकरण सफल कर्मचारियों की प्रोफ़ाइल पर प्रशिक्षित किए गए थे, जो लिंग आधारित कारणों से मुख्य रूप से पुरुष थे। इसमें, डेटा संचालित प्रणालियाँ पूर्वाग्रहों को कायम रख सकती हैं और मानव व्यवहार को नियंत्रित करने वाले सामाजिक नियंत्रण तंत्र को हाशिए पर रख सकती हैं।"
भारत के मुख्य न्यायाधीश का यह कहना है कि तकनीक का सबसे अच्छा इस्तेमाल प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को जीवित और जागृत रखने में है। उनका ऐसा मानना है कि तकनीक में वो शक्ति है जो भविष्य में लोगों की स्वतंत्रता पर आने वाले खतरों के बारे में हमें सतर्क करती है।
साथ ही, उनके हिसाब से एआई बुली करने, दराने-धमकाने और परेशान करने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है। जितनी शक्ति एआई में लोगों के जीवन को बदलने, सामाजिक गड्ढों को भरने और न्याय दिलाने की है, उतना ही इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है; अनुचित व्यवहार को यह बढ़ावा दे सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी बताया कि किस तरह तकनीक ने न्यायिक व्यवस्था को भी पूरी तरह बदल दिया; कोविड के समय में वर्चुअल कोर्ट सिस्टम से देश में 43 मिलियन हियरिंग हुईं और इसकी वजह से महिला अधिवक्ताओं को घर के कामों के साथ अपना प्रोफेशन संभालने में भी बहुत मदद मिली। संविधान पीठ की सुनवाई की वीडियो कॉलिंग के जरिए हुई स्ट्रीमिंग ने लोगों को कोर्ट में चल रहे मामलों के बारे में जागरूक रखा।