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संपत्ति की तरह ही पेंशन का अधिकार भी आर्टिकल 300ए के तहत संरक्षित: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा है कि पेंशन को कर्मचारी के द्वारा कठोर परिश्रम से अर्जित अधिकार माना है, जो संविधान के अनुच्छेद 300-A द्वारा संरक्षित है, इसलिए, इसे बिना कानूनी अधिकार के नहीं लिया जा सकता है.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Updated : April 14, 2025 1:35 PM IST

हाल ही में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhatisgarh HC) ने पेंशन के अधिकार को लेकर अहम फैसला सुनाया है. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा है कि पेंशन को कर्मचारी के द्वारा कठोर परिश्रम से अर्जित अधिकार माना है, जो संविधान के अनुच्छेद 300-A द्वारा संरक्षित है, इसलिए, इसे बिना कानूनी अधिकार के नहीं लिया जा सकता है. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी वैधानिक प्रावधान के बिना या प्रशासनिक निर्देश के आधार पर पेंशन, ग्रेच्युटी या अवकाश नकदीकरण का कोई हिस्सा लेने का प्रयास अनुचित है और उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता राजकुमार गोनेकर को 1990 में सहायक निदेशक नियुक्त किया गया था और बाद में 2000 में उप निदेशक के पद पर पदोन्नत किया गया, लेकिन बाद में उन्हें फिर से सहायक निदेशक के पद पर पदावनत कर दिया गया. रिटायर होने के बाद, छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 9 के तहत, राजकुमार गोनेकर पर सरकारी धन के गबन का आरोप लगाते हुए उनकी पेंशन से 9.23 लाख रुपये की वसूली की गई थी. इसे याचिकाकर्ता ने अवैधानिक और मनमाना होने का दावा करते हुए हाई कोर्ट में चुनौती दी. अदालत के सामने याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्हें उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, जबकि प्रतिवादियों ने दावा किया कि 2016-17 में गबन के संबंध में नोटिस जारी किए गए थे और जवाब मिलने के बाद ही कार्रवाई की गई थी. वहीं, दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत को यह विचार करना था कि क्या पेंशन या उसके किसी भाग को रोकते समय गोनेकर को सुनवाई का अवसर दिया जाना आवश्यक था?

बताते चलें कि मामले के लंबित रहने के दौरान याचिका दायर होने के दौरान राजकुमार गोनेकर की मृत्यु हो गई थी. इसलिए, उनकी जगह पर उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को मुकदमे में शामिल किया गया.

पेंशन का अधिकार आर्टिकल-300 ए के तहत सुरक्षित

पेंशन की राशि में की गई कटौती के फैसले को रद्द करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा है कि पेंशन और ग्रेच्युटी दान नहीं हैं, बल्कि लंबी, निरंतर, वफादार और बेदाग सेवा के कारण अर्जित अधिकार हैं. ये 'संपत्ति' के रूप में हैं जो अनुच्छेद 300-A द्वारा संरक्षित हैं और कानून की उचित प्रक्रिया के बिना इन्हें छीना नहीं जा सकता. अदालत ने स्पष्ट किया है कि पेंशन के निलंबन या वसूली के मामलों में प्राधिकारी को न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का पालन करना होगा और मामले पर अपनी बुद्धि का प्रयोग करना होगा. केवल कारण बताओ नोटिस और याचिकाकर्ता के जवाब के आधार पर पेंशन की वसूली का आदेश कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है, अगर कोई न्यायिक या अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषी साबित होने का प्रमाण नहीं है.

1976 के नियमों के नियम 9 के अनुसार, यदि पेंशनभोगी को सेवा में गंभीर कदाचार या लापरवाही का दोषी पाया जाता है, तो राज्यपाल को पूरी या आंशिक रूप से पेंशन रोकने या वापस लेने या सरकार को हुए वित्तीय नुकसान की वसूली करने का अधिकार है. यदि विभागीय कार्यवाही सेवा में रहते हुए शुरू की गई थी, तो सेवानिवृत्ति के बाद भी वे जारी रहेंगी और उसी प्राधिकारी द्वारा पूरी की जाएंगी जिसने उन्हें शुरू किया था.

रमेश्वर यादव बनाम भारत संघ और एक अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा कि पेंशन के निलंबन के मामलों में सक्षम प्राधिकारी को अपना विचार लागू करना चाहिए और यह माना कि नियम 9 के तहत शक्ति का प्रयोग करके वसूली आदेश कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता को किसी न्यायिक या अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषी नहीं पाया गया है. हाई कोर्ट ने विवादित आदेश को रद्द करते हुए और याचिकाकर्ता की पेंशन से काटी गई किसी भी राशि को वापस करने का निर्देश दिया है.