नई दिल्ली: देश में मौत की सजा के लिए दोषी को फांसी पर लटकाए जाने के तरीके से कम दर्दनाक तरीका खोजने के लिए केन्द्र सरकार एक्सपर्ट कमेटी बनाने पर विचार कर रही है.
अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की ओर से दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने अपना जवाब पेश किया है.
केंद्र की ओर से AG आर वेंकटरमनी ने अदालत में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा है कि केन्द्र सरकार इस बात की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने पर विचार कर रही है कि कानून के मौजूदा प्रावधानों के अनुसार फांसी की सजा पाने वाले सजायाफ्ता कैदियों को फांसी देने के लिए कम दर्दनाक तरीका खोजा जा सकता है या नहीं.
केन्द्र सरकार के जवाब के बाद CJI डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई जुलाई तक टाल दी है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि वो इस मामले को लेकर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाएगा.
अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की ओर से दायर जनहित याचिका में देश में फांसी से मौत की सजा देने के चलन को खत्म करने और इसके बजाय इंजेक्शन या बिजली के झटके जैसे वैकल्पिक तरीकों को अपनाने का अनुरोध किया गया है.
CJI DY Chandrachud, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने इस मामले में केन्द्र सरकार को विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया हैं.
गौरतलब है कि 22 मार्च को सुनवाई के दौरान Supreme Court ने केन्द्र सरकार को फांसी के जरिए मौत की सजा दिए जाने से संबंधित विवरण पेश करने के आदेश दिए थे, जिसमें फांसी की सजा से उस व्यकित पर होने वाले प्रभाव और दर्द के बारे में कोई अध्ययन किया गया हो.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केन्द्र सरकार को एक विशेषज्ञ समिति के गठन का भी दिया था, जो यह जांच करेगी कि फांसी से मौत, मौत की सजा को लागू करने के लिए सबसे उपयुक्त और दर्द रहित तरीका है या नहीं.
तब CJI ने अटॉनी जनरल से कहा था कि हमारे पास फांसी से मौत के प्रभाव, दर्द के कारण और ऐसी मौत होने में लगने वाली अवधि, मौत से ऐसी फांसी को प्रभावित करने के लिए संसाधनों की उपलब्धता पर हमारे पास बेहतर डेटा होना चाहिए.
पीठ ने कहा था कि आज का विज्ञान हमें क्या सुझाव दे रहा है कि यह आज का सबसे अच्छा तरीका है या कोई और तरीका है जो मानवीय गरिमा को बनाए रखने के लिए अधिक उपयुक्त है"
पीठ ने इस मामले में सरकार द्वारा इस तरह का कोई अध्ययन नहीं करने की स्थिती में सुझाव दिया था कि वह इस पर एक अध्ययन करने के लिए एक समिति बना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को समिति में एनएलयू दिल्ली, बैंगलोर या हैदराबाद जैसे राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ, एम्स के कुछ डॉक्टर, देश भर के प्रतिष्ठित लोग और कुछ वैज्ञानिक विशेषज्ञ शामिल करने का सुझाव भी दिया था.
अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की इस याचिका में तर्क दिया गया है विधि आयोग ने अपनी 187वीं रिपोर्ट में कहा था कि उन देशों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिन्होंने फांसी को समाप्त कर दिया और इसके स्थान पर बिजली के झटके, गोली मारने या घातक इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया.
याचिका पर सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत रूप से पेश हुए अधिवक्ता मल्होत्रा में कहा गया है कि फांसी निस्संदेह तीव्र शारीरिक यातना और दर्द देने वाली सजा है. उन्होने कहा कि हमारे देश में फांसी पर लटकाने की प्रक्रिया बिल्कुल क्रूर और अमानवीय है।
अधिवक्ता ने कहा कि देश में फांसी देने के लिए मुश्किल से जल्लाद उपलब्ध होते हैं और दिल्ली में फांसी के लिए ऐसे जल्लाद कलकत्ता, मुंबई आदि से बुलाए जाते हैं.