Advertisement

ईसाई व्यक्ति के शव को दफनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों का अलग-अलग फैसला

जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने भी हलफनामा में दावा किया कि कन्वर्टेड ईसाई को वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 का उल्लंघन भी करता है. जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस नागरत्ना से अलग फैसला सुनाया है.

Written by Satyam Kumar |Updated : January 27, 2025 11:39 AM IST

छत्तीसगढ़ के ईसाई व्यक्ति को दफनाने के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है. अपीलकर्ता (बेटे) ने अपने ईसाई पिता के शव को अपने पूर्वजों के साथ दफनाने की मांग की है और वो कब्रगाह अब अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को दफनाने के लिए तय की गई है. गांववालों ने कन्वर्जन के कारण शव के दफन को लेकर जगह देने से इंकार कर दिया है. राज्य सरकार ने भी पब्लिक ऑर्डर का हवाला देते हुए ग्राम पंचायत के फैसले को बरकरार रखा है. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने भी इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंका किया है. 7 जनवरी से व्यक्ति का शव प्रिजर्व करके रखा गया है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में भी आश्चर्य व्यक्त किया है. आज सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ ने अलग-अलग फैसला सुनाया है. जस्टिस नागरत्ना ने ईसाई व्यक्ति को प्राइवेट लैंड में दफनाने की इजाजत दी है. वहीं, जस्टिस शर्मा ने क्रिश्चिन व्यक्तियों को दफनाने के लिए आवंटित जमीन पर ही दफनाने के निर्देश दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि मृत्यु सबको एक-समान मानती है, इस मामले में मृत्यु ने ही लोगों में विभाजन पैदा किया है. इस मृत्यु के कारण गांव में दफनाने के अधिकार (Right To Burial) को लेकर विभाजन की स्थिति उत्पन्न हुई है. यह स्थिति न केवल सामाजिक असमानता को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि गांव में विवाद को सुलझाने में पंचायत की विफलता है.

अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट में दावा किया कि उसे और उसके परिवार को भेदभाव और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा है. न्यायालय ने स्वीकार किया कि पंचायत ने जो सुझाव दिया, उसने गांव में प्रचलित प्रथाओं को प्रभावित किया. यह स्थिति न केवल विवाद को बढ़ाती है, बल्कि सामाजिक असमानता को भी जन्म देती है.

Also Read

More News

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने भी हलफनामे के माध्यम से कहा कि कन्वर्टेड ईसाई को वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 का उल्लंघन भी करता है. राज्य को कानून के समक्ष समानता का सम्मान करना चाहिए. गांव पंचायत की भेदभावपूर्ण मानसिकता ने सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डाल दिया है. न्यायालय ने आदेश दिया है कि अपीलकर्ता को उसके निजी कृषि भूमि पर दफनाने की अनुमति दी जाए. यह निर्णय न केवल न्याय की स्थापना करता है, बल्कि यह हमारे देश के धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के सिद्धांतों की रक्षा भी करता है.

वहीं, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने जस्टिस नागरत्ना के फैसले से असहमति जताते हुए अलग फैसला सुनाया. जस्टिस शर्मा ने कहा कि व्यक्ति को पंचायत द्वारा तय की हुई जगह पर ही दफनाने का जगह दिया जाएगा.