Shahshi Tharoor Defamation Case: सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता शशि थरूर के खिलाफ चल रहे मानहानि मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये वाक्य रूपक है जो हजार शब्दों को परिभाषित करते हैं. इसमें किसी तरह की मानहानि नहीं छिपी है, बल्कि ये पीएम की अजेयता का वर्णन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि मुकदमा शशि थरूर के असल बयान पर नहीं बल्कि कारवां में छपी लेख के आधार पर दायर की गई है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि स्टेटमेंट थरूर की असल बयान नहीं था, बल्कि इसे पहली बार 2012 में कारवां पत्रिका (Caravan Magzine) में प्रकाशित एक लेख में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कहा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कि प्रधानमंत्री मोदी के बारे में थरूर की टिप्पणी पर आपत्ति क्यों थी, क्योंकि यह प्रधानमंत्री की अजेयता का एक रूपक प्रतीत होता है.
जस्टिस रॉय ने पूछा,
"2012 में, यह अपमानजनक नहीं था. आखिरकार यह एक रूपक (Metaphor) है. मैंने समझने की कोशिश की है. यह उस व्यक्ति की अजेयता को संदर्भित करता है. हिंदी में ये क्या है?"
शशि थरूर के वकील ने कहा,
शिवलिंग पर बिच्छू बैठा है.. न उसे हाथ से उठा सकते हो न उसे मार सकते हो,
जस्टिस ने आगे कहा,
यह मूल रूप से भाषण का एक अलंकार है जो शब्दों और वाक्यांशों का उपयोग करता है औरउस वस्तु और क्रिया पर लागू होता है जिसका वस्तु और क्रिया से कोई संबंध नहीं है. अगर रूपक को उस तरीके से समझा जाए जिस तरह से हम समझते हैं. बहुत बार रूपक सच्चाई को छिपाने के लिए जाता है या कभी-कभी यह एक तस्वीर जैसा होता है जो कि एक हजार शब्द का भाव बता सकते हैं या एक रूपक एक हजार शब्दों का स्थान ले लेता है. मुझे नहीं पता कि किसी ने यहां आपत्ति क्यों की है,
सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कथित तौर पर की गई टिप्पणी शिवलिंग पर बैठे बिच्छू को लेकर उनके खिलाफ दायर मानहानि मामले को खारिज करने की मांग की है. दिल्ली हाईकोर्ट ने थरूर के खिलाफ मानहानि के मुकदमे पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.