बॉम्बे हाई कोर्ट ने पूर्व सेबी अध्यक्ष माधवी बुच एवं दो अन्य लोगो को शेयर मार्केट धोखाधड़ी के मामले में बड़ी राहत दी है. उच्च न्यायालय ने इन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज करने के स्पेशल कोर्ट के फैसले पर 28 दिन यानि चार सप्ताह के लिए रोक लगा दिया है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया है, अदालत ने महज शिकायत को सुनकर ही FIR रजिस्टर करने के आदेश दिए है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुच एवं अन्य दो याचिकाकर्ताओं को अपना जबाव 28 दिन के भीतर अदालत के समक्ष रखने को कहा है. बुच एवं अन्य पांच लोगों पर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कंपनियों की लिस्टिंग के मामले में रेगुलेटरी नियमों की अनदेखी का आरोप लगा है. शिकायतकर्ता ने इन पर शेयर मार्केट मेनिपुलेशन, इनसाइड ट्रेडिंग का भी आरोप लगाया है.
शिकायतकर्ता, सापन श्रीवास्तव (47), जो एक मीडिया रिपोर्टर हैं, ने आरोप लगाया कि प्रस्तावित आरोपियों द्वारा किए गए अपराधों की जांच की मांग की, जिसमें बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी, नियामक उल्लंघन और भ्रष्टाचार शामिल हैं. आरोपों में शेयर बाजार पर एक कंपनी की धोखाधड़ी लिस्टिंग शामिल है, जिसमें नियामक प्राधिकरण, विशेष रूप से सेबी की सक्रिय भागीदारी है.
बॉम्बे की विशेष अदालत ने यहां एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) को पूर्व सेबी चेयरपर्सन मधाबी पुरी बुख और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी और नियामक उल्लंघनों के आरोपों पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. जज शशिकांत एकनाथराव बंगर ने शनिवार को दिए आदेश में कहा कि नियामकों का अनदेखी और सांठगांठ के प्राइम फेसी सबूत हैं, जिसके लिए इस मामले की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है.
अदालत ने कहा कि FIR दर्ज करने के बाद पुलिस 30 दिनों के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट (Status Report) पेश करने को कहा है. बुच के अलावा, अन्य अधिकारियों में बीएसई के प्रबंध निदेशक और सीईओ रामामूर्ति, इसके पूर्व अध्यक्ष और निदेशक प्रमोद अग्रवाल और सेबी के तीन सदस्य अश्विनी भाटिया, अनंत नारायण जी और कमलेश चंद्र वर्धन शामिल हैं.
सेबी ने एक बयान में कहा कि वह इस आदेश को चुनौती देने के लिए उचित कानूनी कदम उठाएगी और सभी मामलों में नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है. सेबी ने कहा कि अदालत ने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और 1994 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर एक कंपनी को लिस्टिंग अनुमति देने में कथित अनियमितताओं की जांच करने के लिए निर्देश देने वाली आवेदन को मंजूरी दी. हालांकि ये अधिकारी उस समय अपने-अपने पदों पर नहीं थे.