देश में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 लागू है. इस कानून के तहत ट्रिपल तलाक बैन है, अब अदालत ने इस कानून में तलाक को विस्तृत से बताते हुए कहा कि तलाक-ए-बिद्दत यानि कि इंस्टेंट तलाक बैन है. तलाक-ए-बिद्दत एक सांस में तीन बार तलाक कह देने की प्रथा है और इस तरह से तलाक देने पर कठोर सजा का प्रावधान है. लेकिन ट्रिपल तलाक के दो अन्य रूप तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन को कानून वैध पाया है. उपरोक्त फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम शख्स के खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द करने का आदेश दिया है.
संबंधित मुस्लिम कपल की शादी साल 2022 में हुई. शादी के साल भर में ही दोनों के संबंध आपस में खराब होने लगे, जिसे लेकर पति ने साल 2023 में तलाक दे दिया और इद्दत पीरियड (90 दिन) की वेटिंग समय भी पूरा नहीं की. इसे लेकर पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत शिकायत दर्ज कराई. मामला अदालत में पहुंचा जहां पति ने कहा कि उसने ट्रिपल तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत नहीं तलाक-ए-हसन दिया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि ज़ोहरा खातून बनाम मोहम्मद इब्राहिम मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 से संबंधित है, जो तलाक के कानून पर विचार करता है. इसमें तलाक के तीन तरीकों का उल्लेख है: अदालत द्वारा पारित तलाक का फरमान, पति द्वारा एकतरफा तलाक और मुस्लिम पत्नी द्वारा ख़ुला. एक और फैसला जिसमें केरल हाई कोर्ट, एर्नाकुलम की एकल पीठ ने जफर सादिक ई.ए. बनाम मारवा और अन्य मामले में माना कि तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन भारत के मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में तलाक के दो स्वीकृत रूप हैं. शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिदत को असंवैधानिक घोषित किया है, जिसमें में एक ही बैठक में तीन बार तलाक का उच्चारण किया जाता है. तलाक-ए-अहसन में यह प्रक्रिया अलग है और यह असंवैधानिक नहीं है. दोनों के बीच विस्तृत अंतर है.
मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 3 कहती है कि किसी मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को दिए गए तलाक़ का उच्चारण, चाहे वह शब्दों में हो, इलेक्ट्रॉनिक रूप से हो या किसी अन्य तरीके से, शून्य और अवैध होगा. वहीं, धारा 2(ग) में तलाक की परिभाषा दी गई है. इसके अनुसार, 'तलाक़' का अर्थ है 'तलाक़-ए-बिद्दत' या तलाक़ का कोई अन्य समान रूप जिसका प्रभाव तत्काल या अपरिवर्तनीय तलाक होता है जो मुस्लिम पति द्वारा दिया जाता है. धारा 4 के अनुसार, कोई भी मुस्लिम पति जो धारा 3 में उल्लिखित तलाक का उच्चारण अपनी पत्नी पर करता है, उसे तीन साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है.
हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले को स्पष्ट करते हुए मुस्लिम शख्स और उसके परिवार के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत रद्द कर दिया है.