नई दिल्ली: साबुन और डिटर्जेंट (केएसडीएल) अनुबंध घोटाले के मुख्य आरोपी और भाजपा विधायक मदल विरुपक्षप्पा को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देने का मामला अब तूल पकड़ रहा है.
Advocates' Association Bengaluru ने देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ को पत्र लिखकर इस जमानत के लिए अपनाई प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए है.
चन्नागिरी से बीजेपी विधायक विरुपक्षप्पा की जमानत याचिका के आउट ऑफ टर्न लिस्टिंग होने को लेकर एसोसिएशन के अध्यक्ष ने सख्त ऐतराज जताया है.
सीजेआई को लिखे पत्र में कहा गया है कि एक तरफ हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत आवेदनों सहित नए मामलों को सूचीबद्ध होने में हफ्तों लग जाते हैं. वही वीआईपी मामलों पर रातों-रात विचार किया जा रहा है, जिससे आम आदमी का न्यायिक प्रणाली से विश्वास उठ जाएगा.
गौरतलब है कि भाजपा विधायक विरुपक्षप्पा के बेटे प्रशांत मदल को लोकायुक्त पुलिस ने 2 मार्च को केएसडीएल कार्यालय में अपने पिता की ओर से कथित रूप से 40 लाख रुपये की रिश्वत लेते समय गिरफ्तार किया था.
प्रशांत मंडल की गिरफ्तारी के बाद लोकायुक्त पुलिस ने मंडल के घर और कार्यालय में तलाशी के दौरान 8.23 करोड़ रुपये से अधिक की नकदी बरामद की थी.
लोकायुक्त पुलिस के अनुसार कथित घोटाला केएसडीएल को रसायन की आपूर्ति से संबंधित है जिसमें कथित तौर पर 81 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की गई थी.
बेटे की गिरफ्तारी के बाद भाजपा विधायक विरुपक्षप्पा ने केएसडीएल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.इसके साथ ही विरुपक्षप्पा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी.
जस्टिस के नटराजन की एकलपीठ ने 7 मार्च को विधायक की याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें सशर्त पांच लाख रुपये के बॉन्ड पर अग्रिम जमानत दी थी.
सशर्त जमानत देते हुए कोर्ट ने विधायक को 48 घंटे के भीतर मामले में जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने का भी निर्देश था.
मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में Advocates' Association Bengaluru के अध्यक्ष विवेक सुब्बा रेड्डी और महासचिव टी जी रवि ने कहा है कि ‘कर्नाटक हाईकोर्ट में आम तौर पर अग्रिम जमानत जैसे नए मामलों को सूचीबद्ध होने में कई दिन और कई सप्ताह लगते हैं, लेकिन वीआईपी (अति महत्वपूर्ण लोगों से जुड़े) मामलों पर तुरंत विचार किया जाता है’
पत्र में कहा गया है कि इस चलन से न्यायिक प्रणाली के प्रति आम आदमी का विश्वास कम हो जाएगा और विधायक को भी एक आम आदमी माना जाना चाहिए.
Association ने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से भी अपील की है कि सभी अग्रिम जमानत याचिकाओं को एक दिन में ही सूचीबद्ध करने के निर्देश हाईकोर्ट रजिस्ट्री को जारी किए जाए, ताकि आम आदमी के साथ भी वीआईपी की भांति व्यवहार किया जा सके.