नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. पटना हाईकोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी को बड़ी राहत देते हुए MP-MLA कोर्ट के आदेश पर लगी रोक को जुलाई तक आगे बढा दिया है.
राहुल गांधी को फिलहाल इस मामले के लिए बिहार की इस विशेष अदालत में पेश नही होना होगा. हाईकोर्ट अब इस मामले पर ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद 4 जुलाई 2023 को सुनवाई करेगी.
हाईकोर्ट ने राहुल गांधी को अब निचली अदालत में व्यक्तिगत तौर पर पेशी से भी हाईकोर्ट ने 4 जुलाई तक के लिए रोक लगा दी है. यानि कि राहुल गांधी को अब जुलाई तक पेश नही होना होगा.
मानहानि के मामले में शिकायतकर्ता ने MP-MLA विशेष कोर्ट से राहुल गांधी के गिरफ्तारी की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उनकी अंतरिम राहत की अवधि अगस्त 2022 में समाप्त हो गई.
इसके बाद पटना की MP-MLA विशेष कोर्ट ने उन्हें 12 अप्रैल 2023 को कोर्ट में उपस्थित होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने को कहा था. अदालत ने राहुल गांधी को समन जारी करते हुए उन्हें उपस्थित होने का आदेश दिया था.
MP-MLA विशेष कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ राहुल गांधी के अधिवक्ता ने व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग करते हुए अदालत में याचिका दाखिल की थी.
पटना हाईकोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए पूर्व में राहुल गांधी को 15 मई तक के लिए व्यक्तिगत तौर पर पेशी से राहत दी गई थी.
जिसके बाद राहुल गांधी की ओर से पुन: इस मामले में रोक को आगे बढाने की मांग की गयी.
पटना हाईकोर्ट में राहुल गांधी के अधिवक्ताओं ने दलील दी है कि राहुल गांधी को इसी मामले में सूरत की अदालत से सजा मिल चुकी है ऐसे में एक ही मामले में दो जगह ट्रायल ठीक नहीं है.
अधिवक्ताओं ने कहा कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी जा चुकी है ऐसे में उन्हें कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने से राहत दी जानी चाहिए.
बहस सुनने के पटना हाईकोर्ट ने राहुल गांधी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने से मिली छूट के आदेश को 4 जुलाई तक के लिए आगे बढा दिया है.
वर्ष 2019 में राहुल गांधी ने कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मोदी सरनेम को ले कर टिप्पणी की थी. इसी मामले में बिहार के वरिष्ठ बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पटना के सिविल कोर्ट में परिवाद पत्र दायर किया था.
इस मामले में सूरत की कोर्ट ने उन्हें दो वर्षों की सजा सुनाई थी, जिस कारण उन्हें अपनी संसद सदस्यता खोनी पड़ी थी.