बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र के बदलापुर शहर में एक स्कूल के अध्यक्ष और सचिव को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जहां एक पुरुष परिचारक ने दो नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रस्टियों को घटना की शिकायत नहीं लिखाने के लिए आरोपी पाया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस आर एन लड्ढा की एकल पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह दिखाने के लिए सामग्री है कि दोनों आरोपियों को 16 अगस्त से पहले कथित घटना के बारे में पता था, लेकिन उन्होंने पुलिस या स्थानीय प्राधिकारी को इसकी सूचना देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. जस्टिस लड्ढा ने आगे कहा कि अपराध गंभीर है और अदालत को नाबालिग पीड़ितों की दुर्दशा पर विचार करना होगा.
अदालत ने कहा,
"पीड़ित नाबालिग हैं. उन्होंने जो आघात सहा है, वह उनके किशोरावस्था को प्रभावित करेगी, जिससे उन्हें स्थायी मनोवैज्ञानिक निशान रह सकते हैं."
अदालत ने कहा कि यह निर्विवाद है कि आवेदक स्कूल के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हैं.
अदालत ने आगे कहा
"प्रथम दृष्टया ऐसी सामग्री है जो दर्शाती है कि पीड़ितों के माता-पिता ने अपनी शिकायतें कक्षा शिक्षक और अन्य कर्मचारियों के समक्ष व्यक्त की थीं. आवेदक 16 अगस्त से पहले घटना के बारे में जानते थे. जानकारी होने के बावजूद, उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को नहीं दी,"
पीठ ने कहा कि मामला दर्ज करने में देरी मुख्य रूप से आवेदक( स्कूल के दो ट्रस्टियों) की लापरवाही के कारण हुई, जिसके कारण केवल वे ही जानते हैं. इसमें कहा गया है कि यदि व्यक्ति को अपराध के बारे में पता है या उसे इसके बारे में बताया गया है, तो उसका कानूनी दायित्व है कि वह अपराध की सूचना दे.
अदालत ने आगे कहा कि घटना के दिन स्कूल परिसर की सीसीटीवी फुटेज गायब है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों का भी हवाला दिया, जो किसी व्यक्ति पर यह कर्तव्य और दायित्व डालते हैं कि वह किसी भी यौन उत्पीड़न अपराध के बारे में पता चलने पर तुरंत पुलिस को सूचना दे.
अदालत ने कहा कि यह कर्तव्य केवल एक प्रक्रिया नहीं है जिसे अनदेखा किया जा सकता है. ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने में विफलता या परिणाम गंभीर हैं. इसमें कहा गया है कि न्यायालयों को ऐसे मामलों से निपटने में सावधानी बरतनी चाहिए, जहां स्कूल या शैक्षणिक संस्थान नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्ट करने में विफल रहे हैं.
सत्र न्यायालय द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद दोनों आरोपियों ने अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया. उन्होंने दावा किया कि उन्हें कथित अपराध के बारे में जानकारी नहीं थी और इसलिए उन्हें इसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, दोनों ने आगे दावा किया कि प्राथमिकी दर्ज करने में अस्पष्ट देरी हुई है. उन्होंने इस बात पर भी संदेह जताया कि क्या यह घटना हुई थी, उन्होंने दावा किया कि दोनों पीड़ित 15 अगस्त को स्कूल में ध्वजारोहण समारोह में शामिल हुए थे और तब कोई शिकायत नहीं की गई थी.
सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों ने घटना की सूचना मिलने के बाद तुरंत कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कहा कि वे तत्काल कार्रवाई करने में विफल रहे. दोनों आरोपियों पर घटना की तुरंत पुलिस को सूचना न देने और लापरवाही बरतने के लिए पोक्सो अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. पुलिस के अनुसार, अगस्त में स्कूल के शौचालय के अंदर चार और पांच साल की दो लड़कियों के साथ कथित तौर पर एक पुरुष परिचारक ने यौन शोषण किया था. मामले की जांच बदलापुर पुलिस कर रही थी। लेकिन पुलिस जांच में गंभीर खामियों को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है.