Badlapur Encounter Case: बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज राज्य सरकार से पूछा कि अब तक क्यों एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं की गई, जबकि मजिस्ट्रेट रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा गया है कि पांच पुलिसकर्मी बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में एक आरोपी की मौत के लिए जिम्मेदार थे. महाराष्ट्र सरकार ने अदालत को सूचिक करते हुए कहा कि वह पहले से ही इस घटना की जांच कर रही है और एक रिटायर्ड चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया है.
बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस रेवती मोहिते डेर और नीला गोखले की एक डिवीजन बेंच यह विचार कर रही थी कि क्या सरकार द्वारा FIR दर्ज की जानी चाहिए. वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई, जो सरकार की ओर से पेश हुए, ने कहा कि राज्य पहले से ही इस मामले की एक स्वतंत्र जांच कर रहा है और इस घटना की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तहत आयोग भी स्थापित किया गया है. जस्टिस ने सवाल तलब किया कि क्या जांच केवल आकस्मिक मृत्यु रिपोर्ट (ADR) के आधार पर की जा सकती है.
"हमें FIR के रजिस्ट्रेशन की चिंता है. वह कहां है? क्या ADR एक FIR है? हम समझते हैं कि प्रारंभ में ADR दर्ज की जाती है, लेकिन जब यह स्पष्ट हो जाता है कि यह आकस्मिक या प्राकृतिक मृत्यु नहीं थी, बल्कि हत्या थी, तो क्या FIR दर्ज नहीं की जानी चाहिए?"
वरिष्ठ अधिवक्ता मंजुला राव, जिन्हें कोर्ट द्वारा सहायता के लिए नियुक्त किया गया था, ने कहा कि जब मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है जिसमें कहा गया है कि यह एक अप्राकृतिक मृत्यु थी, तो FIR दर्ज की जानी चाहिए. कोर्ट ने आगे पूछा कि CID अपनी जांच पूरी होने के बाद क्या करेगी.
इस पर अमित देसाई ने कहा,
"जांच समाप्त होने के बाद, CID अपने अंतिम रिपोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार प्रस्तुत करेगी. यह या तो क्लोजर रिपोर्ट हो सकती है या अभियोजन रिपोर्ट (चार्जशीट)."
मौजूद पक्षों को सुनने के बाद FIR दर्ज करने के मसले पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना फैसला रिजर्व रखा है.
शिंदे को अगस्त 2024 में दो नाबालिग लड़कियों के साथ बदलापुर के एक स्कूल के वॉशरूम में यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इस बदालपुर यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी अक्षय शिंदे को पिछले साल सितंबर में कथित तौर पर पुलिस एनकाउंटर में मार गिराया गया था. यह घटना कथित तौर पर उसे तालोजा जेल से कल्याण ले जाते समय गोली मारी गई थी. पुलिस टीम के सदस्यों ने दावा किया कि आरोपी ने उनमें से एक की बंदूक छीन ली और गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके बाद पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई गई. कानून के प्रावधानों के तहत, जो हिरासत में मौत के मामलों में न्यायिक जांच की अनिवार्यता को निर्धारित करता है, मजिस्ट्रेट ने जांच की और रिपोर्ट हाई कोर्ट में प्रस्तुत की. अपनी जांच रिपोर्ट में मजिस्ट्रेट ने कहा है कि आरोपी के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों में सच्चाई है कि यह एक फेक एनकाउंटर थी. उन्होंने पुलिसकर्मियों के सेल्फ डिफेंस के दावों पर भी संदेह जताया है.