नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में 'यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग्स लॉ स्कूल' (University of Edinburgh's Law School) में एक भाषण दिया है। इस भाषण के बाद ऑडिएंस से बातचीत के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बताया कि उनके अनुसार समाज में अधिकारों के प्रति सजगता तब आती है जब अदालत और जनता में परस्पर संवाद होता है।
सीजेआई (CJI) जस्टिस सी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने 1 जून, 2023 को 'यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग्स लॉ स्कूल' में भाषण दिया है जो 'ग्लोबल चेंज एंड द लीगल प्रोफेशन, पास्ट एंड फ्यूचर: पर्स्पेक्टिव्स फ्रॉम इंडिया' विषय पर था।
अपने भाषण के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने ऑडिएंस के साथ इंटरैक्ट किया और इस दौरान उन्होंने अपने अधिकारों के प्रति सजग समाज (Rights-Alert Society) को लेकर अपने विचार रखे।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग्स लॉ स्कूल में कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षण करता है लेकिन इस उच्चतम न्यायालय के अलावा भी कई ऐसे फैक्टर्स हैं जो भारतीय संविधान के आदर्शों को जीवित रखते हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के साथ शासन की कई संरचनाएं हैं जो लोगों में उनके अधिकारों के प्रति सजगता लाने में एक अहम भूमिका निभाती हैं; इन संरचनाओं में शामिल हैं विधानपालिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive) और न्यायपालिका (Judiciary)।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने संविधान के आदर्शों को जीवित रखने में सत्ता के विकेंद्रीकरण (Decentralisation of Powers) को भी श्रेय दिया है। संविधान के तहत सत्ता और शक्ति को स्थानीय निकायों (Local Bodies) तक लेकर जाना एक बहुत बड़ी बात है और इससे देश में कोई एक जरूरत से ज्यादा शक्तिशाली नहीं होता है और इससे लोगों के अधिकारों का भी हनन नहीं होता है।
अपने भाषण के बाद ऑडिएंस से इंटरैक्शन के दौरान ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि समाज में उनके अधिकारों के प्रति सजगता कहां से आती है। उन्होंने कहा कि अदालत की अहमियत को कोई कम नहीं कर सकता है लेकिन एक ऐसा समाज बनाने के लिए जहां सभी लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग हों, जरूरी है कि अदालत, जनता और सिवल सोसाइटी संगठनों के बीच परस्पर संवाद हो।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का यह कहना है कि अदालत का एक संभाषण-संबंधी रोल (Dialogic Role) है जिसमें उन्हें लोगों से उनके अधिकारों के प्रति बातचीत करनी है। इसी तरह के डिस्कशन ही एक जीवंत, जागरूक और अपने अधिकारों के प्रति सजग समाज को जन्म देते हैं।