जस्टिस अजय मनिकराव खानविलकर (AM Khanwilkar) भारत के नए लोकपाल बने है. जस्टिस एएम खानविलकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (Former Justice of Supreme Court) रह भी चुके हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Dropaudi Murmu) ने जस्टिस खानविलकर को देश का लोकपाल नियुक्त किया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अगुवाई वाली समिति ने लोकपाल के लिए जस्टिस खानविलकर के नाम की अनुशंसा की थी, जिस पर राष्ट्रपति ने मंगलवार (27 फरवरी 2024) के दिन अपनी स्वीकृति दे दी है. बता दें कि लोकपाल का अध्यक्ष पद मई, 2022 से रिक्त था.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस खानविलकर को लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त किया है. राष्ट्रपति ने लोकपाल के तीन न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति पर भी मुहर लगाई है. ये तीन न्यायिक सदस्य, पूर्व जज जस्टिस लिंगप्पा नारायण स्वामी, जस्टिस संजय यादव और ऋतु राज अवस्थी है. वहीं, राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी नोटिफिकेशन में सुशील चंद्रा, पंकज कुमार और अजय तिर्की को लोकपाल के गैर-न्यायिक सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया है. बता दें कि जस्टिस एएम खानविलकर के लोकपाल बनने से पहले झारखंड हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती एक्टिंग लोकपाल थे. आइये जानते हैं, भारत के नए लोकपाल जस्टिस एएम खानविलकर से जुड़ी विशेष बातें…
जस्टिस एएम खानविलकर ने कानूनी प्रैक्टिस बंबई हाईकोर्ट में साल 1982 से शुरू की. 1984 में, वे सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने लगे. राज्य और केन्द्र की विभिन्न कानूनी पदों पर अपनी सेवा दिया. वहीं, साल 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पर्यावरण से जुड़े मामले में न्याय मित्र(Amicus Curie) बनाया. साल 2000 जस्टिस एएम खानविलकर के लिए खास रहा. उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त किया गया, यहीं पर साल 2002 में परमानेंट जज बनाए गए. बाद में जस्टिस खानविलकर बॉम्बे हाईकोर्ट और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने. साल 2016 में वह सुप्रीम कोर्ट में जज बनें, जहां उन्होंने रिटायरमेंट (29 जुलाई 2022) तक सेवा दी.
1) विदेशी पर रोक को चुनौती (नोएल हार्पर vs भारत सरकार)
जस्टिस खानविलकर उस बेंच का हिस्सा रहें, जिन्होंने भारत में विदेशी फंडिंग को नियंत्रित करने वाले फैसले को चुनौती देनेवाली याचिका को खारिज की थी. बेंच ने आदेश में दिया कि अगर अनियंत्रित तरीके से विदेशी फंडिंग देश में आती रहेगी, तो ये देश की अखंडता के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी.
2) गुजरात दंगों की जांच करने वाली SIT रिपोर्ट को चुनौती (जाकिया अहसान जाफरी vs गुजरात सरकार)
गुजरात दंगे के एक आरोपी अहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने SIT रिपोर्ट को चुनौती देने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा रही थी. आरोप था कि SIT ने सही जांच नहीं की है. समाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ भी इस मामले में शामिल थी. इस मामले की सुनवाई जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने की थी. बेंच ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ ने इस घटनाक्रम में चीजों को अपने हिसाब से गढ़ा है.
3) सम्मान से मरने का अधिकार (कॉमन कॉज vs भारत सरकार)
साल 2018 में, लाइलाज बीमारी से ग्रसित व्यक्ति ने अपने लिए मौत (इच्छामृत्यु) की मांग की. 5 जजों की बेंच ने पाया कि इस मामले में इलाज की कोई संभावना नहीं है. इस कारण को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति की मांग मान ली. जस्टिस खानविलकर भी उस बेंच का हिस्सा थें.
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के बाद ही ‘लोकपाल’ की संस्था बनी. ये संस्था लोक सेवक से जुड़ी करप्शन के आरोपों की जांच के लिए बनाई गई है. लोकपाल बनने वाले अधिकारी को कानून की जानकारी होना नितांत आवश्यक है. इसलिए यह पद सामान्य: कानूनविदों को ही दिया जाता है, जैसे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आदि. लोकपाल पब्लिक लाइफ से करप्शन जैसी समस्याओं को दूर करने को प्रयासरत है.