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पुरुषों के चेहरे पर खिल जाएगी मुस्कान, जब अपनी मर्जी से अलग रह रही पत्नी को नहीं देना पड़ेगा गुजारा-भत्ता, जान लें इलाहाबाद हाई कोर्ट ये फैसला

सीआरपीसी की धारा 125 (4) को स्पष्ट करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने पति से अलग रह रही है, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है.

सांकेतिक AI इमेज

Written by Satyam Kumar |Published : July 13, 2025 12:29 PM IST

हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता से जुड़े मामले में अहम फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने कहा कि अपने मन से अलग रह रही पत्नी को पति से गुजारा भत्ता पाने का कोई अधिकार नहीं है. बता दें कि तलाक से जुड़े मामले के कानूनों को जिस तरह से ए स्त्री प्रधान बताकर आलोचना की जा रही थी, इस फैसले के बाद से अधिकांश पुरुषों के चेहरे पर मुस्कान खिल सकती है.

विपुल अग्रवाल की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा ने मेरठ की फैमिली कोर्ट के 17 फरवरी के आदेश को रद्द कर दिया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि बिना वैध कारण के पति से अलग रह रही पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है.

हाई कोर्ट ने कहा,

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“निचली अदालत ने यह तथ्य रिकॉर्ड में लिया है कि पत्नी यह साबित करने में विफल रही कि वह पर्याप्त कारण से पति से अलग रह रही है और पति उसका खर्च उठाने में उपेक्षा कर रहा है. फिर भी पत्नी के पक्ष में 5,000 रुपये महीने का गुजारा भत्ता तय कर दिया गया है.”

हाई कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत यदि पत्नी बिना उचित कारण के पति से अलग रह रही है तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है. सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस मामले में यह तथ्य जानने के बावजूद कि पत्नी बिना उचित कारण के पति से अलग रह रही है, गुजारा भत्ता की राशि तय कर दी गयी.

हाई कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ अदालत ने याचिकाकर्ता की उपार्जन क्षमता पर विचार नहीं किया और पत्नी एवं नाबालिग बच्चे के पक्ष में क्रमशः 5,000 रुपये और 3,000 रुपये प्रति माह का गुजारा भत्ता तय कर दिया. हालांकि, पत्नी की और से पेश वकील ने दलील दी कि पत्नी अपने पति द्वारा उपेक्षा किए जाने की वजह से अलग रह रही है और यही कारण है कि निचली अदालत ने याचिका स्वीकार कर गुजारा भत्ता तय किया.

हाई कोर्ट ने आगे कहा,

“अधीनस्थ अदालत द्वारा उक्त तथ्य को रिकॉर्ड में लेना और पत्नी के पक्ष में प्रति माह 5,000 रुपये गुजारा भत्ता तय करना दोनों ही आपस में विरोधाभासी है और धारा 125(4) में दिए गए प्रावधान का उल्लंघन है। इसलिए, 17 फरवरी, 2025 के त्रुटिपूर्ण आदेश में हस्तक्षेप आवश्यक है.”

हाई कोर्ट ने आठ जुलाई को दिए अपने निर्णय में इस मामले को फिर से फैमिली कोर्ट के पास भेजकर दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के बाद कानून के मुताबिक नए सिरे से निर्णय करने को कहा. हालांकि, हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस बीच, याचिकाकर्ता मामले के लंबित रहने के दौरान अपनी पत्नी को 3,000 रुपये प्रति माह और बच्चे को 2,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम गुजारा भत्ता देते रहे.

(खबर एजेंसी इनपुट से है)