इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मालिकाना विवाद के मामले में 18 मुकदमों में से एक (वाद संख्या 7) के वादी द्वारा राधा रानी को पक्षकार बनाने का आवेदन खारिज कर दिया है. यह आवेदन खारिज करते हुए जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा, पौराणिक चित्रणों को सुना सुनाया साक्ष्य माना जाता है.
आज सुबह फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस विवाद में आवेदक ने राधा रानी को संपत्ति का संयुक्त धारक होने का दावा विभिन्न पुराणों और संहिताओं का संदर्भ देते हुए किया है जिसमें राधा रानी को भगवान कृष्ण की आत्मा माना गया है. ये पौराणिक चित्रण कानूनी संदर्भ में आमतौर पर सुने सुनाए साक्ष्य माने जाते हैं.
याचिकाकर्ता की वकील रीना एन सिंह ने दावा किया कि राधा रानी, भगवान कृष्ण की वैध पत्नी हैं और अनंतकाल से दोनों की पूजा की जाती है तथा 13.37 एकड़ विवादित भूमि के दोनों स्वामी हैं. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस विवादित मामले में अपने दावे के समर्थन में कोई साक्ष्य या बाध्यकारी अधिकार पेश नहीं कर सका. इस मामले में वादी उस जगह को भगवान कृष्ण की जन्मभूमि होने का दावा करते हैं जहां वर्तमान में शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है. हालांकि, अदालत ने कहा कि यदि यह आवेदक भविष्य में संयुक्त स्वामित्व के दावे के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य के साथ आता है तो उचित चरण में पक्षकार बनाए जाने पर विचार किया जा सकता है.
वादकारियों का दावा है कि मथुरा में स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि पर 1669-70 से शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन द्वारा अतिक्रमण किया गया है. यह वाद श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से कथित अतिक्रमण हटाने की मांग को लेकर दायर किया गया है. अदालत ने 23 मई को दिए अपने आदेश में कहा कि पक्षकार बनाने के आवेदन में कोई दृढ़ कथन (बयान) नहीं है कि विवादित संपत्ति में राधा रानी का एक मंदिर था. इस आदेश को सोमवार को अपलोड किया गया.
यह विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के समय बनी शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जिसे कथित तौर पर भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था.