इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को पूर्व समाजवादी पार्टी (SP) विधायक इरफान सोलंकी और उनके भाई रिजवान सोलंकी को कानपुर नगर में चल रही एक आपराधिक मामले में जमानत दे दी है. हालांकि, जमानत मिलने के बावजूद, दोनों भाई जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उनके खिलाफ अन्य आपराधिक मामले भी लंबित हैं. यह मामला 2022 में, इरफान और रिजवान सोलंकी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 386 (जान से मारने या गंभीर चोट पहुंचाने की धमकी देकर वसूली करना) के तहत कानपुर नगर के जाजमऊ पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में सपा नेता और उनके भाई पर आरोप है कि दोनों भाइयों ने कुछ गरीब लोगों की भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया और जब एक व्यक्ति, अखिल अहमद, ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने उसे धमकी दी और 10 लाख रुपये की मांग की.
इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस राज बीर सिंह ने इस बात पर विचार किया कि कई आपराधिक मामलों के लंबित होने सिर्फ, जमानत के लिए अस्वीकृति का आधार नहीं हो सकती. जमानत देते हुए जस्टिस राज बीर सिंह ने कहा कि आवेदक इरफान सोलंकी ने पहले ही दो साल से अधिक समय से हिरासत में है. जस्टिस ने कहा कि केवल कई मुकदमे लंबित है इसलिए जमानत देने से इंकार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाया. प्रभाकर तिवारी बनाम उत्तर प्रदेशराज्य 2020 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि कई आपराधिक मामलों की लंबितता खुद में जमानत के लिए अस्वीकृति का आधार नहीं हो सकती. राज्य की ओर से मौजूद वकील ने कहा कि आरोपी के खिलाफ पहले से कई मुकदमे लंबित है, इसलिए इन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिए.
जमानत की मांग करते हुए इरफान सोलंकी के वकील ने तर्क दिया कि इरफान सोलंकी 4 जनवरी, 2023 से जेल में हैं और उन्होंने पहले ही दो साल से अधिक समय तक हिरासत में बिताया है. आरोपी सोलंकी भाइयों ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया है. उनका दावा है कि इस घटना के समय इरफान सोलंकी विधायक थे और उन्हें राजनीतिक दुश्मनी के कारण निशाना बनाया गया.
हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट से इरफान और रिजवान सोलंकी को इस वसूली के मामले में जमानत मिल गई है, लेकिन उन्हें रिहाई के लिए अन्य लंबित आपराधिक मामलों में भी जमानत प्राप्त करनी होगी.