नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम (Uttar Pradesh Intermediate Education Act) के एक प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत व्यक्ति अपने शैक्षणिक दस्तावेजों में नाम, उपनाम अपनानाना या जाति या धर्म का खुलासा कर या सम्मानजनक शब्दों या टाइटल को शामिल करने का अनुरोध को स्वीकार करने पर रोक लगा दी गई थी।
कोर्ट ने यह आदेश समीर राव नामक एक युवक की रिट याचिका पर पारित किया। आपको बता दे की सम्बंधित याचिका में यूपी बोर्ड द्वारा हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाण पत्र में नाम बदलने के लिए दिए गए आवेदन को खारिज करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई थी।
जानकारी के अनुसार, जस्टिस अजय भनोट (Justice Ajay Bhanot) की पीठ ने विनियम में शामिल प्रतिबंधों को रद्द करते हुए असंगत कहा। पीठ ने कहा की ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंधों के परीक्षण में विफल पाया गया।
पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा, "विनियमन 40 (ग) में शामिल प्रतिबंध मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 में निहित नाम चुनने और बदलने के मौलिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।"
कोर्ट के आदेश ने यूपी शिक्षा बोर्ड को निर्देश देते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन को "शाहनवाज" से "मोहम्मद समीर राव" में बदलने और उक्त परिवर्तन को शामिल करते हुए नए हाईस्कूल और इंटरमीडिएट प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति दे।
कोर्ट ने कहा कि मानव जीवन और एक व्यक्ति के नाम की अंतरंगता निर्विवाद है, साथ ही जोर देकर कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 के आधार पर नाम रखने या बदलने का मौलिक अधिकार प्रत्येक नागरिक में निहित है।
क्या कहता है उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम, 1921 का प्रावधान: आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अधिनियम, 1921 के विनियम 40 (ग) में यह भी कहा गया था कि धर्म परिवर्तन या जाति परिवर्तन के बाद या विवाह के बाद नाम परिवर्तन नाम परिवर्तन के आवेदनों पर विचार नहीं किया जा सकता।